चार्ल्स डार्विन के मेंढक को बचाने की नई चिली पहल

चिली ने हाल ही में एक नई संरक्षण योजना की शुरुआत की है जिसका उद्देश्य संकटग्रस्त डार्विन के मेंढक को विलुप्त होने से बचाना है। यह छोटा-सा उभयचर अपनी पत्ते जैसे त्वचा और नर मेंढकों द्वारा मुँह के अंदर पोच में टैडपोल पालने की अनोखी प्रवृत्ति के लिए जाना जाता है। यह पहल चिली सरकार की जलवायु परिवर्तन और स्थिरता समिति द्वारा शुरू की गई है, जिसमें प्रजनन क्षेत्रों की सुरक्षा और निजी ज़मीन मालिकों के साथ सहयोग शामिल है।
डार्विन के मेंढक की विशेषताएं और प्रजातियां
डार्विन का मेंढक (Rhinoderma darwinii), जिसे ‘सदर्न डार्विन्स फ्रॉग’ भी कहा जाता है, लगभग 3 सेंटीमीटर लंबा होता है और यह दिन में सक्रिय रहने वाला जीव है। इसके अतिरिक्त, एक और दुर्लभ प्रजाति ‘नॉर्दर्न डार्विन्स फ्रॉग’ (Rhinoderma rufum) भी है, जो अब लगभग विलुप्त हो चुकी है। इन दोनों प्रजातियों की खोज प्रसिद्ध प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन ने 1834 में चिली के दक्षिणी चिलोए द्वीपों में की थी।
आवास और जीवन शैली
यह मेंढक चिली और अर्जेंटीना के आर्द्र वनों में पाया जाता है। इसकी उपयुक्त जीवनशैली में घास के मैदान, काईयुक्त क्षेत्र, लकड़ियों का मलबा और युवा झाड़ियाँ शामिल हैं। यह अपने वातावरण में पत्तों जैसा दिखाई देता है, जिससे यह शिकारियों से बच पाता है। ख़तरा महसूस होने पर यह मरा हुआ होने का अभिनय करता है।
संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता क्यों
पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन, वन्य आग, आक्रामक प्रजातियों और शहरीकरण ने डार्विन के मेंढक के प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचाया है। इन कारणों से इनकी जनसंख्या में भारी गिरावट आई है। चिली और अर्जेंटीना में इनकी वर्तमान आबादी सिर्फ 62 जगहों पर सिमट गई है। हाल ही में शुरू की गई निगरानी प्रक्रियाओं से यह जानकारी सामने आई है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- डार्विन के मेंढक की खोज चार्ल्स डार्विन ने 1834 में की थी।
- यह मेंढक Dicroglossidae परिवार का सदस्य है, जिसमें एशिया की 220 से अधिक मेंढक प्रजातियाँ शामिल हैं।
- डार्विन के मेंढक का वैज्ञानिक नाम Rhinoderma darwinii है।
- नर मेंढक टैडपोल्स को अपने मुँह के अंदर पालते हैं — यह प्रवृत्ति उभयचरों में अत्यंत दुर्लभ है।
इस संरक्षण प्रयास से उम्मीद है कि न केवल मौजूदा आबादी को सुरक्षा मिलेगी, बल्कि डार्विन के मेंढक की नई आबादियाँ भी खोजी जा सकेंगी। इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोगों में इस अद्वितीय जीव के प्रति जागरूकता और संरक्षण भावना भी बढ़ेगी। यह पहल पर्यावरणीय जैव विविधता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।