ग्लेशियरों का संकट: जलवायु परिवर्तन से वैश्विक हिम क्षेत्रों पर मंडराता खतरा

विश्वभर में ग्लेशियरों के पिघलने की गति और सीमा पहले से कहीं अधिक गंभीर पाई गई है। ‘साइंस’ जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि यदि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा गया तो वर्तमान जलवायु नीतियों की तुलना में दोगुने से अधिक ग्लेशियर बर्फ को संरक्षित किया जा सकता है। इस रिपोर्ट का प्रकाशन उस समय हुआ जब ताजिकिस्तान में पहली बार आयोजित संयुक्त राष्ट्र के ग्लेशियर सम्मेलन में विश्व नेता एकत्र हुए।

अध्ययन की मुख्य बातें

यह अध्ययन दस देशों के 21 वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किया गया जिसमें 2,00,000 से अधिक ग्लेशियरों का विश्लेषण आठ मॉडल्स की सहायता से किया गया। शोध के अनुसार:

  • वर्तमान तापमान पर भी ग्लेशियरों का लगभग 39% हिस्सा आने वाले समय में खो जाएगा।
  • यदि तापमान 2.7°C तक बढ़ता है (जैसा कि वर्तमान नीतियाँ संकेत देती हैं), तो केवल 24% ग्लेशियर बर्फ शेष बचेगी।
  • यदि तापमान को 1.5°C तक सीमित रखा जाए तो 54% ग्लेशियर बर्फ संरक्षित रह सकती है।

क्षेत्रीय प्रभाव

वैश्विक औसत के पीछे छुपे क्षेत्रीय संकट और भी भयावह हैं:

  • यूरोपीय आल्प्स, वेस्टर्न रॉकीज, आइसलैंड: 2°C तापमान पर 90% ग्लेशियर बर्फ का नुकसान।
  • स्कैंडेनेविया: संपूर्ण ग्लेशियर बर्फ समाप्त हो सकती है।
  • हिंदू कुश हिमालय: 2°C पर केवल 25% ग्लेशियर बर्फ बच पाएगी; जबकि 1.5°C पर यह 40–45% तक संरक्षित रह सकती है।

एशिया के लिए खतरे की घंटी

हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर भारत, नेपाल, चीन और पाकिस्तान की प्रमुख नदियों का स्रोत हैं, जो दो अरब से अधिक लोगों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। इनका पिघलना एशिया में जल संकट, बाढ़ और सूखे की आशंकाओं को और बढ़ाता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ग्लेशियरों की संख्या: पृथ्वी पर लगभग 2,00,000 ज्ञात ग्लेशियर हैं।
  • सबसे तेज़ पिघलने वाले क्षेत्र: ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) क्षेत्र – जैसे वेनेजुएला और इंडोनेशिया।
  • भारत के प्रमुख ग्लेशियर: सियाचिन, गंगोत्री, यमुनोत्री, ज़ेमु ग्लेशियर आदि।
  • 1.5°C लक्ष्य: यह लक्ष्य पेरिस समझौते में निर्धारित किया गया था, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे और संभव हो तो 1.5°C तक सीमित करना है।

ग्लेशियर केवल जल भंडार नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के सबसे स्पष्ट संकेतक भी हैं। उनका तेज़ी से पिघलना मानवता के सामने एक चेतावनी है – समय अब भी हमारे हाथ में है। स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव और कार्बन उत्सर्जन में कटौती ही इस संकट को रोकने का सबसे प्रभावी उपाय है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए ग्लेशियरों को बचाना अब केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक अस्तित्व का प्रश्न बन गया है।

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