ग्रेट निकोबार इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट: भूकंप और सूनामी की अनदेखी करता विकास?

₹72,000 करोड़ की लागत से प्रस्तावित ग्रेट निकोबार इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (GNIP) एक ओर जहां आर्थिक विकास और रणनीतिक विस्तार की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, वहीं पर्यावरण और भूकंपीय जोखिमों को लेकर इस पर गहरी चिंताएं भी उभर रही हैं। विशेष रूप से, वर्ष 2004 की विनाशकारी सूनामी से बुरी तरह प्रभावित रहे इस क्षेत्र में परियोजना के लिए की गई पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्ट को लेकर वैज्ञानिक समुदाय सवाल उठा रहा है।

भूकंप की आशंका: EIA बनाम वैज्ञानिक चेतावनी

EIA रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 9.2 तीव्रता वाले भूकंप की पुनरावृत्ति की संभावना “कम” है और इसका ‘रिटर्न पीरियड’ 420–750 वर्षों का है। हालांकि, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के भूगर्भ वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में दक्षिण अंडमान के समुद्री अवसादों में पिछले 8,000 वर्षों में सात बड़े सूनामी घटनाओं के प्रमाण पाए गए हैं।
प्रोफेसर जावेद मलिक, जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया, का कहना है कि निकोबार जैसे संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी बड़े प्रोजेक्ट से पहले “साइट-स्पेसिफिक” अध्ययन अनिवार्य है। वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि निकोबार क्षेत्र के कैम्पबेल और कार निकोबार क्षेत्रों में अभी तक कोई ठोस भूगर्भीय सर्वेक्षण नहीं हुआ है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ग्रेट निकोबार परियोजना में एक ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, 450 मेगावोल्ट-एम्पियर की गैस और सोलर आधारित बिजली परियोजना तथा टाउनशिप विकास शामिल हैं।
  • यह क्षेत्र 2004 की सूनामी में सबसे अधिक प्रभावित रहा था; भारत में लगभग 10,000 लोगों की जान गई थी।
  • अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह भूकंपीय श्रेणी 5 में आता है, जो भारत में सबसे अधिक जोखिम वाला क्षेत्र है।
  • क्षेत्र में भारतीय प्लेट, बर्मी माइक्रोप्लेट के नीचे सबडक्शन (Subduction) के जरिए खिसकती है, जिससे बड़े भूकंप की आशंका हमेशा बनी रहती है।

वैज्ञानिक समुदाय की चेतावनी

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलुरु के वैज्ञानिक प्रो. सी.पी. राजेंद्रन का कहना है कि इस क्षेत्र में कई अज्ञात “रप्चर लाइन्स” हैं, जिनकी पृष्ठभूमि और ऊर्जा संचय की स्थिति अभी अस्पष्ट है। उनके अनुसार, “यह भूगर्भीय रूप से अत्यंत सक्रिय क्षेत्र है और यहाँ बड़े पैमाने पर बंदरगाह या कंटेनर टर्मिनल बनाना जोखिमपूर्ण हो सकता है।”
पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने भी स्वीकार किया है कि इस परियोजना के लिए निकोबार क्षेत्र में कोई विशेष स्थल-विशेष अध्ययन नहीं हुआ है। उन्होंने इसे “गणनात्मक जोखिम” कहा और माना कि भविष्य में भूकंप कब आएगा, यह पूर्वानुमान असंभव है।

जैव विविधता और आदिवासी समुदाय पर प्रभाव

यह परियोजना न केवल भूकंपीय जोखिमों से घिरी हुई है, बल्कि इससे जैव विविधता और स्थानीय जनजातियों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई, पारिस्थितिक असंतुलन और जनजातीय आजीविका पर संकट की आशंका को देखते हुए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने परियोजना की पर्यावरणीय समीक्षा के आदेश दिए हैं।

निष्कर्ष

ग्रेट निकोबार परियोजना भारत के रणनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों के लिहाज से अहम हो सकती है, लेकिन इसे पर्यावरण और भूकंपीय जोखिमों की कीमत पर आगे बढ़ाना भारी पड़ सकता है। वैज्ञानिकों की चेतावनियों और अधूरी भूगर्भीय जानकारी के बीच परियोजना की सुरक्षा और स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। विकास के साथ विवेक का संतुलन ही इस परियोजना की सफलता और दीर्घकालिक प्रभाव को सुनिश्चित कर सकता है।

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