ग्रेगर मेंडेल की मटर: 160 वर्षों बाद सुलझी अनुवांशिकी की पहली पहेली

1856 में, ऑस्ट्रियाई भिक्षु ग्रेगर जोहान मेंडेल ने मटर के पौधों पर प्रयोग करना शुरू किया, ताकि यह समझा जा सके कि माता-पिता से संतान में लक्षण कैसे स्थानांतरित होते हैं। आठ वर्षों में 10,000 से अधिक पौधों पर किए गए उनके प्रयोगों ने विरासत के निश्चित पैटर्न को उजागर किया, जो आज “जेनेटिक्स” यानी आनुवंशिकी के क्षेत्र की नींव बन चुका है।

सात लक्षण और स्थिर अनुपात

मेंडेल ने सात विशिष्ट लक्षणों का अध्ययन किया जिनमें प्रत्येक के दो स्पष्ट रूप थे, जैसे:

  • बीज का आकार (गोल या सिकुड़ा हुआ),
  • बीज का रंग (पीला या हरा),
  • फूल का रंग (बैंगनी या सफेद),
  • फली का आकार (फूली हुई या संकुचित),
  • फली का रंग (हरा या पीला),
  • फूल की स्थिति (तने के किनारे या सिरे पर),
  • पौधे की ऊँचाई (लंबा या छोटा)।

उन्होंने देखा कि पहले पीढ़ी (F1) में एक लक्षण दूसरे पर “प्रभावी” होता है (जैसे गोल बीज)। लेकिन दूसरी पीढ़ी (F2) में “दबा हुआ” लक्षण पुनः प्रकट होता है, लगभग 3:1 के अनुपात में।

आधुनिक विज्ञान की नींव

मेंडेल के निष्कर्षों को उनकी मृत्यु के बाद 1900 में तीन वैज्ञानिकों—ह्यूगो डि व्रिज़, कार्ल कोरेन्स, और एरिच वॉन चर्मक—ने फिर से खोजा। इन निष्कर्षों से यह स्पष्ट हुआ कि लक्षण “जीन” नामक विरासती इकाइयों से नियंत्रित होते हैं। हर लक्षण के लिए एक जीव में दो “एलिल” होते हैं—एक माता और एक पिता से। इनमें से एक प्रायः प्रभावी होता है और दूसरे को दबा देता है।

2024 का अनुसंधान: वैज्ञानिकों ने पहेली पूरी की

नेचर पत्रिका में 23 अप्रैल, 2024 को प्रकाशित एक अध्ययन में, नागालैंड विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मेंडेल द्वारा अधूरे छोड़े गए तीन लक्षणों की आनुवंशिक व्याख्या कर दी:

  1. फली का रंग: एक जीन (ChlG) के आगे DNA खंड के हटने से क्लोरोफिल निर्माण रुकता है और फली पीली हो जाती है।
  2. फली का आकार: MYB और CLE-पेप्टाइड-जीन में बदलावों से फली संकुचित होती है।
  3. फूल की स्थिति: CIK-जैसे कोरिसेप्टर-किनेज जीन और एक अन्य DNA संशोधक खंड के कारण फूल तने के सिरे पर आते हैं।

कैसे किया गया शोध?

वैज्ञानिकों ने 697 से अधिक मटर की किस्मों का DNA अनुक्रमण (sequencing) किया, जिससे 60 टेराबेस से अधिक डेटा प्राप्त हुआ—यानी लगभग 14 अरब पन्नों के बराबर जानकारी। इस विशाल डेटा से एक विस्तृत आनुवंशिक नक्शा तैयार किया गया, जिससे न केवल मेंडेल के लक्षणों की पुष्टि हुई, बल्कि 72 नए कृषि-संबंधी लक्षणों की भी पहचान हुई।

भविष्य की दिशा

इस शोध से न केवल 160 साल पुरानी पहेली सुलझी, बल्कि कृषि में क्रांति की भी नींव रखी गई है। इसमें फसलों की उपज बढ़ाने, रोग प्रतिरोधकता सुधारने और पर्यावरणीय अनुकूलन को बेहतर बनाने की अपार संभावनाएँ हैं।

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