केरल में लॉ शिक्षा में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए आरक्षण: एक महत्वपूर्ण पहल
शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में केरल सरकार द्वारा एक सराहनीय कदम उठाया गया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने राज्य सरकार के उस प्रस्ताव को अंतरिम मंजूरी दी है, जिसके तहत केरल के सभी लॉ कॉलेजों में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए दो सुपरन्यूमेररी सीटें आरक्षित की जाएंगी। यह निर्णय कानूनी शिक्षा में समावेशिता और लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ी पहल मानी जा रही है।
इस निर्णय की पृष्ठभूमि एक ट्रांसजेंडर महिला द्वारा दायर याचिका से जुड़ी है, जिसने केरल लॉ एंट्रेंस एग्जामिनेशन (KLEE) 2025 में सफलता प्राप्त की थी। उसे सरकारी लॉ कॉलेज, कोझिकोड में प्रवेश के योग्य पाया गया, लेकिन ट्रांसजेंडर वर्ग के लिए कोई आरक्षित सीट न होने के कारण उसे प्रवेश से वंचित होना पड़ा। इस मुद्दे को लेकर हाई कोर्ट ने BCI को निर्देश दिया कि वह सरकार के प्रस्ताव पर विचार करे, जिसके बाद यह अंतरिम मंजूरी दी गई।
ट्रांसजेंडर छात्रों को प्रतिनिधित्व का अवसर
यह प्रस्ताव तीन वर्षीय और पाँच वर्षीय एलएलबी दोनों पाठ्यक्रमों में लागू होगा। इसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय को कानूनी पेशे में प्रतिनिधित्व देना और उन्हें समाज में एक समान दर्जा दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाना है। यह कदम सामाजिक समावेशिता, समान अवसर और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी एक सकारात्मक संकेत देता है।
यह आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के नालसा (NALSA) निर्णय और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुरूप है, जिनका उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा में लाना और उन्हें भेदभाव से मुक्त वातावरण उपलब्ध कराना है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने केरल सरकार के प्रस्ताव को अंतरिम रूप से मंजूरी दी।
- हर लॉ कॉलेज में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए दो सुपरन्यूमेररी सीटें आरक्षित की जाएंगी।
- यह आरक्षण तीन वर्षीय और पाँच वर्षीय एलएलबी दोनों कोर्स में लागू होगा।
- यह निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और सुप्रीम कोर्ट के नालसा निर्णय (2014) के अनुरूप है।
आगे की चुनौतियाँ और संभावनाएं
इस निर्णय के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राज्य के सभी लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को इस दिशा में स्पष्ट दिशा-निर्देश अपनाने होंगे। आरक्षण के साथ-साथ संस्थानों को एक समावेशी और संवेदनशील वातावरण बनाना भी सुनिश्चित करना होगा, जहाँ ट्रांसजेंडर छात्र बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त कर सकें।
यह निर्णय अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। यदि इस नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो यह पूरे देश में उच्च शिक्षा में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रेरक कदम साबित हो सकता है।