केरल की रबर खेती पर हमला: बीटल-फफूंदी गठजोड़ बना कृषि के लिए गंभीर खतरा

केरल की रबर खेती एक नई जैविक आपदा की चपेट में है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक अध्ययन में पाया है कि “एंब्रोसिया बीटल” (Euplatypus parallelus) और दो प्रकार की फफूंद — Fusarium ambrosia और Fusarium solani — का घातक सहयोग रबर के पेड़ों को व्यापक नुकसान पहुंचा रहा है। यह रिपोर्ट भारतीय जर्नल Current Science में प्रकाशित हुई है और यह पहली बार है जब F. solani को वयस्क एंब्रोसिया बीटल के साथ संबंध में देखा गया है।

बीटल-फफूंदी गठजोड़: कैसे होता है हमला

  • एंब्रोसिया बीटल लकड़ी में सुरंग (galleries) बनाकर फफूंद को वहां लाकर बसाता है और खुद व अपने लार्वा के लिए पोषक तत्व प्राप्त करता है।
  • फफूंदी लकड़ी को कमजोर करने वाले एंजाइम छोड़ती है, जिससे बीटल अधिक गहराई तक पहुंच सकता है।
  • यह पेड़ की प्रणाली (xylem) को अवरुद्ध करता है और पत्तों का गिरना, तने का सूखना, और लेटेक्स उत्पादन में भारी कमी लाता है।
  • गंभीर मामलों में यह पेड़ों की मृत्यु तक का कारण बनता है।

पहली बार भारत में कैसे मिला

  • इस बीटल की भारत में उपस्थिति सबसे पहले 2012 में गोवा के काजू के पेड़ों में देखी गई थी।
  • वर्तमान में केरल के इरिट्टी-कन्नूर क्षेत्र में इसकी उपस्थिति दर्ज की गई है, जहां पेड़ों की छाल से लेटेक्स का रिसाव किसानों द्वारा नोट किया गया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • केरल भारत की रबर उत्पादन का 90% योगदान करता है, और भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा रबर उत्पादक है।
  • एंब्रोसिया बीटल मूलतः मध्य और दक्षिण अमेरिका का निवासी है।
  • यह बीटल 80 से अधिक प्रकार के चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ों को संक्रमित कर सकता है – जैसे काजू, नारियल, कॉफी, आम और टीक।
  • Fusarium फफूंद केवल पौधों ही नहीं, बल्कि मानव, मेंढक, मकड़ी जैसे अन्य जीवों को भी संक्रमित कर सकते हैं, विशेषकर जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है।

नियंत्रण के उपाय

  • संक्रमण के बाद पेड़ को ठीक होने में बहुत समय लगता है और उस दौरान लेटेक्स उत्पादन रुक सकता है।
  • रोकथाम के उपायों में शामिल हैं:

    • प्रभावित हिस्सों को हटाना
    • एंटीफंगल एजेंट्स का प्रयोग
    • बीटल के लिए जाल (traps) लगाना
    • संक्रमित लकड़ी को जलाना या चिप्स में काट देना
  • वैज्ञानिक अब वैकल्पिक जैविक उपचार, जैसे प्रतिस्पर्धी फफूंदी (antagonistic fungi) या सूक्ष्म जीवों का मिश्रण (microbial consortia) जैसे उपायों पर ज़ोर दे रहे हैं।

नीति और भविष्य की रणनीति

  • विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या केवल स्थानीय नहीं है — अगर यह गठजोड़ अन्य रोगजनक फफूंद के साथ विकसित होता है, तो इसका प्रभाव भारत की अन्य फसल प्रणालियों जैसे कॉफी, आम, काजू आदि पर भी पड़ सकता है।
  • भूगोल-आधारित रणनीतियों, स्थानीय शोध संस्थानों और नीति निर्माताओं के सहयोग से ही इस खतरे से निपटना संभव है।

रबर खेती, जो केरल की अर्थव्यवस्था और लाखों किसानों की आजीविका की रीढ़ है, आज एक नए रूप के जैविक संकट का सामना कर रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अब समय आ गया है कि हम पारंपरिक रासायनिक उपायों से आगे बढ़कर सतत, वैज्ञानिक और जैविक समाधानों को अपनाएं, ताकि इस संकट से स्थायी राहत मिल सके।

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