कुवैत के फेलाका द्वीप पर 4,000 साल पुराना दिलमुन मंदिर खोजा गया
कुवैत के फेलाका द्वीप पर हाल ही में हुई एक पुरातात्विक खुदाई ने ब्रॉन्ज एज (कांस्य युग) की दिलमुन सभ्यता से जुड़ा एक अद्भुत रहस्य उजागर किया है। एक कुवैती-डेनिश पुरातत्व दल ने यहां एक 4,000 वर्ष पुराना मंदिर खोजा है, जो न केवल क्षेत्र की धार्मिक परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि गल्फ क्षेत्र के प्राचीन व्यापार और प्रशासनिक महत्त्व को भी दर्शाता है। यह खोज विशेष रूप से इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी स्थान पर एक अन्य मंदिर पहले ही मिल चुका है — यानी यह स्थल दो प्राचीन मंदिरों का केंद्र रहा है।
दिलमुन सभ्यता के दो मंदिर एक ही स्थान पर
इस खोज की विशेषता यह है कि यह मंदिर उसी स्थान पर मिला है जहाँ पिछले वर्ष एक अन्य दिलमुन मंदिर मिला था। दोनों मंदिर लगभग 1900 से 1800 ईसा पूर्व के माने जा रहे हैं। खुदाई स्थल “टेल F6” पर किए गए कार्य से यह स्पष्ट हुआ कि ये मंदिर एक के ऊपर एक बनाए गए थे — एक दुर्लभ पुरातात्विक परिघटना। मंदिर की पूरी संरचना, मुहरें और मिट्टी के बर्तन जैसी वस्तुएं मिलना यह प्रमाणित करता है कि यह स्थान दिलमुन काल में धार्मिक और प्रशासनिक केंद्र रहा होगा।
डॉ. ओले हेर्सलुंड के अनुसार, यह संरचना बहुकक्षीय है और इसकी केंद्रीय कक्ष व्यवस्था बहरीन और पूर्वी अरब के अन्य धार्मिक स्थलों से मिलती-जुलती है। यह न केवल दिलमुन संस्कृति की आध्यात्मिकता को दर्शाता है, बल्कि उनकी स्थापत्य कला और धार्मिक प्रणाली को भी उजागर करता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- यह मंदिर 4,000 वर्ष पुराना है और दिलमुन सभ्यता से संबंधित है।
- फेलाका द्वीप पर दो दिलमुन मंदिर एक ही स्थान पर खोजे गए हैं।
- खुदाई में मुहरें, मिट्टी के बर्तन, मोती और शिल्पित कलाकृतियाँ मिली हैं।
- दिलमुन सभ्यता कुवैत, बहरीन और पूर्वी सऊदी अरब तक फैली थी और यह मेसोपोटामिया व सिंधु घाटी के बीच व्यापार का प्रमुख केंद्र थी।
फेलाका द्वीप: एक प्राचीन व्यापार और आध्यात्मिक केंद्र
फेलाका द्वीप ब्रॉन्ज एज के दौरान एक प्रमुख समुद्री केंद्र था, जहाँ मेसोपोटामिया, पूर्वी अरब और सिंधु घाटी के व्यापारी एकत्र होते थे। यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि द्वीप केवल अस्थायी ठहराव का स्थान नहीं था, बल्कि एक स्थायी, समृद्ध और संगठित बस्ती थी।
मंदिर के पास से मिली मुहरें और मुद्रांकन दर्शाते हैं कि यह स्थान व्यापारिक लेन-देन और प्रशासनिक नियंत्रण के लिए भी उपयोग में लाया जाता था। साथ ही, इसका धार्मिक स्वरूप इसे सामुदायिक एकत्रता का केंद्र भी बनाता था।
दिलमुन के लोग: व्यापार, संस्कृति और आध्यात्मिकता का संगम
दिलमुन सभ्यता लगभग 3000 से 1600 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली थी और इसे प्राचीन मेसोपोटामिया में “शुद्धता और जीवन की भूमि” के रूप में वर्णित किया गया है। दिलमुन के लोग व्यापारी, नाविक, प्रशासक और शिल्पकार थे, जो फेलाका जैसे द्वीपों पर स्थायी रूप से निवास करते थे।
उनकी संस्कृति में धार्मिकता, व्यापार और कला का गहरा समन्वय था। इस मंदिर की खोज न केवल दिलमुन की धार्मिक परंपराओं को स्पष्ट करती है, बल्कि उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक गहराई को भी उजागर करती है।