काजीरंगा में “घासभूमि पक्षी गणना”: क्या है यह सर्वेक्षण और क्यों है यह महत्वपूर्ण?

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मार्च 18 से मई 25, 2025 के बीच एक विशेष “घासभूमि पक्षी गणना” अभियान चलाया गया, जिसका उद्देश्य वहां की दुर्लभ और संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों का आकलन करना था। यह पहल एक शोध छात्र चिरंजीब बोरा के नेतृत्व में शुरू हुई, जिन्हें भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की INSPIRE फैलोशिप प्राप्त हुई थी।
सर्वेक्षण की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का लगभग 70% क्षेत्र घासभूमियों से आच्छादित है। बोरा का शोध ‘ब्लैक-ब्रेस्टेड पैरटबिल’ नामक संकटग्रस्त पक्षी पर केंद्रित है। इसी शोध के अंतर्गत उन्हें मिले ध्वनि रिकॉर्डिंग उपकरणों का उपयोग कर, उन्होंने और पार्क प्रशासन ने तय किया कि सभी घासभूमि पक्षियों की गणना की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य यह जानना था कि किन-किन पक्षी प्रजातियों का वास अब भी इन प्राकृतिक आवासों में हो रहा है।
सर्वेक्षण में अपनाई गई विशेष विधि
इस पक्षी गणना की सबसे विशिष्ट विशेषता थी ‘पैसिव अकॉस्टिक मॉनिटरिंग’—एक ऐसी विधि जिसमें पक्षियों की आवाज़ों को रिकॉर्ड करके उनकी पहचान की जाती है। पारंपरिक दृष्टि आधारित विधियों की तुलना में यह विधि अधिक प्रभावशाली मानी गई, क्योंकि ये पक्षी आकार में छोटे, रंग में घास जैसे और बहुत शर्मीले होते हैं।
बोरा और उनकी टीम ने उद्यान के 29 स्थानों पर 6 रिकॉर्डिंग यंत्र लगाए, जिन्हें उन्होंने तीन दिन तक चालू रखा। बाद में इन रिकॉर्डिंग्स को स्पेक्ट्रोग्राम और मशीन लर्निंग आधारित ‘बर्डनेट’ सॉफ़्टवेयर की सहायता से विश्लेषित किया गया।
मुख्य प्रजातियाँ और परिणाम
इस सर्वेक्षण में 43 घासभूमि पक्षी प्रजातियाँ दर्ज की गईं, जिनमें 1 अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered), 2 संकटग्रस्त (Endangered), और 6 संवेदनशील (Vulnerable) प्रजातियाँ शामिल हैं। सर्वेक्षण में जिन 10 प्राथमिक प्रजातियों को चिन्हित किया गया था, वे हैं:
- बंगाल फ्लोरिकन
- स्वैम्प फ्रैंकोलिन
- फिन्स वीवर
- स्वैम्प ग्रास बैबलर
- जर्डन बैबलर
- स्लेंडर-बिल्ड बैबलर
- ब्लैक-ब्रेस्टेड पैरटबिल
- मार्श बैबलर
- ब्रिस्टल्ड ग्रासबर्ड
- इंडियन ग्रासबर्ड
इनमें से फिन्स वीवर की एक प्रजनन कॉलोनी की खोज सर्वेक्षण की एक बड़ी उपलब्धि रही, जिसमें 85 से अधिक घोंसले मिले।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- INSPIRE फैलोशिप विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।
- काजीरंगा का 70% क्षेत्र घासभूमियों से ढका है, जो विशिष्ट जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है।
- पैसिव अकॉस्टिक मॉनिटरिंग पक्षी गणना की एक आधुनिक विधि है जो विशेष रूप से घासभूमि पक्षियों के लिए उपयोगी है।
- फिन्स वीवर जैसी प्रजातियाँ केवल ब्रह्मपुत्र के बाढ़ क्षेत्र में पाई जाती हैं और इसलिए अत्यधिक संकटग्रस्त हैं।
घासभूमि पक्षियों के सामने खतरे
असम ने पिछले चार दशकों में 70% घासभूमियाँ खो दी हैं। इन आवासों के नष्ट होने के पीछे मुख्य कारण हैं:
- अत्यधिक चराई और कृषि विस्तार जैसे मानवीय हस्तक्षेप
- ‘इकोलॉजिकल सक्सेशन’—प्राकृतिक रूप से घासभूमियों का जंगलों में परिवर्तित होना
- जलवायु परिवर्तन, जिससे प्रजनन चक्र और वितरण प्रभावित हो रहे हैं
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ब्रह्मपुत्र की घासभूमियों में मिलने वाली प्रजातियाँ समाप्त हो गईं, तो वे वैश्विक रूप से विलुप्त हो जाएँगी।
यह सर्वेक्षण केवल एक आंकड़ा संग्रह प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि हमारा पर्यावरण किस दिशा में जा रहा है। घासभूमि पक्षी “पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत” के संवेदनशील संकेतक हैं—और उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति हमें हमारे संरक्षण प्रयासों की सफलता का संकेत देती है।