काजीरंगा टाइगर रिज़र्व: भारत का तीसरा सबसे घना बाघ आवास केंद्र

असम के काजीरंगा टाइगर रिज़र्व (KTR) ने भारत में तीसरा सबसे अधिक बाघ घनत्व दर्ज किया है, जो केवल कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिज़र्व और उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क से पीछे है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में काजीरंगा के 1307.49 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 148 बाघों की गिनती की गई है।

बाघों की संख्या में वृद्धि के प्रमुख कारण

  • बिस्वनाथ वन्यजीव प्रभाग में पहली बार सैंपलिंग: जहां 27 बाघ दर्ज किए गए, जिससे कुल संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • पूर्वी असम वन्यजीव प्रभाग में 2022 की तुलना में 104 से बढ़कर 115 बाघ।
  • नगांव वन्यजीव प्रभाग में 6 बाघों की स्थिर संख्या बनी रही।
  • कुल मिलाकर 1997 में 80 बाघों से यह संख्या बढ़कर 2024 में 148 तक पहुँच गई है।

सर्वेक्षण की प्रक्रिया

  • सर्वेक्षण दिसंबर 2023 से अप्रैल 2024 के बीच कैमरा ट्रैप्स के माध्यम से किया गया।
  • 13,157 ट्रैप नाइट्स में 4,011 बाघों की छवियाँ दर्ज की गईं।
  • कुल 148 वयस्क बाघों की पहचान की गई: 83 मादा, 55 नर और 10 अज्ञात लिंग।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • बाघ घनत्व: काजीरंगा में 18.65 बाघ प्रति 100 वर्ग किमी, बांदीपुर (19.83) और कॉर्बेट (19.56) से पीछे।
  • प्रथम बाघ आकलन: काजीरंगा में 1997 में हुआ था, जिसमें 80 बाघ पाए गए।
  • नदी तंत्र: ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ दिफालु और मोरादिफालु इस रिज़र्व से होकर बहती हैं।
  • संवेदनशील प्रजातियाँ: एक सींग वाला गैंडा, पूरब का दलदली हिरण, हाथी, हूलॉक गिबन, और गंगेटिक डॉल्फिन यहाँ पाई जाती हैं।

आवासीय विस्तार और संरक्षण

  • बुरहाचापोरी-लाओखोवा अभयारण्यों को शामिल कर 200 वर्ग किमी क्षेत्र को रिज़र्व में जोड़ा गया।
  • 12.82 वर्ग किमी अतिक्रमणमुक्त भूमि को बाघ आवास के रूप में पुनः स्थापित किया गया।
  • इस विस्तार से बाघों को आवागमन, प्रजनन और विस्थापन की बेहतर संभावनाएँ मिलीं।

जैव-भौगोलिक और पारिस्थितिकी

  • काजीरंगा उत्तर-पूर्व ब्रह्मपुत्र घाटी क्षेत्र में स्थित है और इसकी भौगोलिक स्थिति ब्रह्मपुत्र के बाढ़ मैदानों में है।
  • यहाँ की भूमि प्राकृतिक जलोढ़ निक्षेपों से बनी है और यह राजीव गांधी ओरंग नेशनल पार्क तथा नामेरी टाइगर रिज़र्व से जुड़ी हुई है।

काजीरंगा टाइगर रिज़र्व ने न केवल बाघों की रक्षा की है बल्कि उनके आवास क्षेत्रों के विस्तार, संरक्षण और अतिक्रमण मुक्त क्षेत्रों के विकास के माध्यम से भारत के वन्य जीवन संरक्षण में एक नई दिशा प्रदान की है। बाघ संरक्षण में असम की यह पहल पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत बन रही है।

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