उत्तराखंड का अनोखा प्रयास: 14 संकटग्रस्त पौधों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में पुनः स्थापित करने की पहल

पश्चिमी हिमालय की जैव विविधता से समृद्ध उत्तराखंड राज्य ने भारत में पहली बार एक समर्पित योजना के तहत 14 संकटग्रस्त पौधों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवासों में फिर से स्थापित करने की दिशा में एक साहसिक कदम उठाया है। उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा द्वारा संचालित यह प्रयास देशभर में वनस्पति संरक्षण के क्षेत्र में एक नई मिसाल बन रहा है।

उच्च हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की दुर्लभ वनस्पतियाँ

उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र से लेकर तराई तक फैली जैव विविधता में कई ऐसी पौधों की प्रजातियाँ हैं जो न केवल पारिस्थितिक, बल्कि औषधीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कई प्रजातियाँ जैसे कि हिमालयी जेंटियन, सफेद हिमालयी लिली, जटामांसी, दून चीज़ वुड, और कुमाऊँ फैन पाम अब संकट के दौर में हैं।
इनकी संख्या में कमी का मुख्य कारण है अत्यधिक दोहन, प्राकृतिक आवासों का क्षरण, जलवायु परिवर्तन और कम पुनर्जनन दर।

वैज्ञानिक पद्धति से पुनर्स्थापन की योजना

IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के नेतृत्व में शुरू किए गए इस कार्यक्रम में पौधों को पहले विभाग के उच्च हिमालयी नर्सरियों (जैसे देववन, हर्षिल, मंडल, मुनस्यारी) में वैज्ञानिक तरीकों से उगाया गया। उसके बाद इनके ऐतिहासिक प्राकृतिक आवासों को भौगोलिक सूचना प्रणाली (GPS) की सहायता से चिह्नित कर वहां मृदा सुधार और अन्य तैयारी के बाद पुनः रोपण शुरू किया गया है।
जुलाई 2025 के अंत तक प्रथम चरण पूरा होने की संभावना है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • यह भारत का पहला संगठित वनस्पति पुनर्स्थापन कार्यक्रम है।
  • परियोजना के पहले चरण में 14 प्रजातियाँ शामिल हैं — जिनमें से 4 अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered), 3 संकटग्रस्त (Endangered) और 1 असुरक्षित (Vulnerable) हैं।
  • हिमालयी जेंटियन, जटामांसी, सफेद हिमालयी लिली जैसी प्रजातियाँ औषधीय रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
  • देववन, हर्षिल, मुनस्यारी आदि में प्रजाति-विशिष्ट नर्सरी तकनीकों से इन्हें उगाया गया।
  • प्रत्येक पुनर्स्थापन स्थल को GPS द्वारा चिह्नित किया गया है और सुरक्षा हेतु फेंसिंग व गश्त की व्यवस्था की गई है।

संरक्षण का एक नया अध्याय

इस पहल से यह स्पष्ट है कि वन्यजीव संरक्षण की तरह अब वनस्पति संरक्षण को भी समान महत्व दिया जा रहा है। इससे अन्य राज्यों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपनी संकटग्रस्त स्थानीय वनस्पतियों को पुनर्जीवित करने के लिए इसी तरह के कदम उठाएं। भविष्य में इस परियोजना का विस्तार कर और अधिक प्रजातियों को शामिल करने की योजना है।
साथ ही यह भी दर्शाता है कि जिन औषधीय पौधों पर परंपरागत और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ निर्भर करती हैं, उन्हें संरक्षित करना नितांत आवश्यक है।
उत्तराखंड की यह पहल न केवल उसकी जैव विविधता को संरक्षित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, बल्कि यह दर्शाता है कि वैज्ञानिक अनुसंधान, क्षेत्रीय विशेषज्ञता और सतत निगरानी के संयोजन से वनस्पतियों के संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव संभव हैं। यह पहल वनस्पति संरक्षण के प्रति देश की गंभीरता और दीर्घकालिक सोच का प्रतीक है।

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