उत्तराखंड और हिमाचल में भारी बारिश और भूस्खलन: जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा

पिछले कुछ दिनों से देहरादून सहित उत्तराखंड के कई जिलों में मूसलाधार बारिश हो रही है, जिसके चलते नदियाँ खतरे के स्तर तक उफान पर हैं और कई जगहों पर भूस्खलन की घटनाएँ सामने आई हैं। अब तक केवल उत्तराखंड में ही 15 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भी पिछले एक महीने से ऐसी घटनाओं का सिलसिला जारी है। इन आपदाओं ने न केवल जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है, बल्कि बुनियादी ढाँचे को भी भारी नुकसान पहुँचाया है।

पहाड़ी इलाकों में अधिक बारिश क्यों होती है?

मानसून का असर इस बार उत्तर-पश्चिम भारत में खासा तेज़ रहा है। बंगाल की खाड़ी से उठने वाले लगातार निम्न दाब वाले तंत्र सामान्य से अधिक उत्तर की ओर बढ़े, जिसके कारण उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में बारिश का स्तर बढ़ गया। अगस्त महीने में ही उत्तर-पश्चिम भारत में 34% अधिक वर्षा दर्ज की गई।
पहाड़ी क्षेत्रों में हवा तेजी से ऊपर उठती है और विशाल आकार के बादल बनते हैं, जो सामान्य से अधिक वर्षा कराते हैं। यही कारण है कि यहाँ 200-300 मिमी जैसी भारी वर्षा एक आपदा का कारण बन जाती है, जबकि इसी स्तर की बारिश तटीय कर्नाटक या मेघालय जैसे राज्यों में सामान्य मानी जाती है।

पहाड़ी इलाकों में आपदाओं का खतरा क्यों अधिक होता है?

मैदानी इलाकों में भारी वर्षा का पानी नदियों या जलाशयों में बहकर चला जाता है। लेकिन पहाड़ों में यही पानी मिट्टी, पत्थर और मलबे के साथ बहते हुए भूस्खलन, मडस्लाइड और अचानक आई बाढ़ का रूप ले लेता है। जब बड़े जलस्रोत बाधित होते हैं, तो पानी बस्तियों और सड़कों में घुस आता है और पुलों को तोड़ देता है।
हालाँकि, हर क्लाउडबर्स्ट जैसी घटना आपदा में तब्दील नहीं होती। आपदा तभी बनती है जब बारिश भूस्खलन-प्रवण पहाड़ी ढलानों पर हो या जब मलबा नदियों में गिरकर उनका प्रवाह रोक दे।

जलवायु परिवर्तन की भूमिका

पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) की दिशा में बदलाव देखा गया है। ये विक्षोभ सामान्यतः भूमध्य सागर से उत्पन्न होकर उत्तर भारत में वर्षा कराते हैं, लेकिन अब इनका दक्षिण की ओर खिसकना और मानसून से टकराना हिमालयी क्षेत्र में वर्षा का पैटर्न और जटिल बना रहा है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि वैश्विक तापन (Global Warming) इसकी मुख्य वजह है। हिमालय में भविष्य में चरम वर्षा की घटनाएँ और बढ़ेंगी, साथ ही लंबे शुष्क दौर भी देखने को मिल सकते हैं। आर्कटिक की बर्फ पिघलने का असर भी मानसून के बदलाव में शामिल माना जा रहा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश मानसून के दौरान भूस्खलन के लिए सबसे संवेदनशील क्षेत्र माने जाते हैं।
  • अगस्त 2025 में जम्मू के उदमपुर जिले में 24 घंटे में 630 मिमी बारिश दर्ज हुई, जो गुजरात के राजकोट की वार्षिक वर्षा के बराबर है।
  • लद्दाख के लेह में अगस्त 1973 के बाद इस साल पहली बार 59 मिमी बारिश 48 घंटे में दर्ज की गई।
  • पश्चिमी विक्षोभ भारत में सर्दियों की वर्षा और हिमपात के प्रमुख कारक होते हैं।

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