ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर IAEA की सख्ती और इज़राइल का हमला: अंतरराष्ट्रीय संकट की दिशा

12 जून 2025 को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित करते हुए ईरान को उसके 1974 के व्यापक सुरक्षा समझौते (Comprehensive Safeguards Agreement) के उल्लंघन का दोषी ठहराया। यह पहली बार है जब IAEA ने औपचारिक रूप से ईरान की “अनुपालन विफलता” (non-compliance) को स्थापित किया है — एक ऐसा कदम जो अब मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक पहुंचा सकता है।
IAEA का निर्णय और इसके निहितार्थ
IAEA बोर्ड के 35 सदस्यों में से केवल चीन, रूस और वेनेज़ुएला ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि 11 देशों ने मतदान से परहेज़ किया। प्रस्ताव में ईरान के लावीसान-शियान, वरामिन और तुरकुज़ाबाद स्थलों पर यूरेनियम के अज्ञात स्रोतों के साक्ष्य मिलने पर “गंभीर चिंता” व्यक्त की गई।
इस प्रस्ताव को खाड़ी के कई देशों और इज़राइल का समर्थन मिला। इज़राइल ने अगले ही दिन, 13 जून को, ईरान के परमाणु स्थलों पर “प्रारंभिक हमले” कर दिए और देश में आपातकाल की घोषणा कर दी।
अनुच्छेद XII.C का उल्लेख
IAEA के 1957 के संविधान के अनुच्छेद XII.C के तहत एजेंसी को यह अधिकार है कि वह किसी सदस्य देश के उल्लंघन पर तकनीकी सहायता रोक सकती है, उपकरणों की वापसी मांग सकती है, और मामला सुरक्षा परिषद को भेज सकती है। इससे पहले यह प्रावधान केवल छह देशों — इराक, रोमानिया, उत्तर कोरिया, ईरान (2006), लीबिया और सीरिया — के खिलाफ लागू हुआ था।
ईरान की प्रतिक्रिया
तेहरान ने इस प्रस्ताव को “राजनीतिक” बताते हुए खारिज किया और फोर्डो सुविधा में अपग्रेड सहित एक नया भूमिगत संवर्धन केंद्र बनाने की घोषणा की। ईरान ने अपने वायु रक्षा तंत्र को सतर्क कर दिया है और ड्रोन बेड़े की तैनाती भी की है। साथ ही, उसने चेतावनी दी कि इज़राइल को “कड़ी सज़ा” दी जाएगी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- IAEA का मुख्य उद्देश्य है परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग और परमाणु हथियारों से रोकथाम।
- 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) के तहत ईरान पर लगे कई प्रतिबंध 18 अक्टूबर 2025 को समाप्त हो रहे हैं।
- प्रस्ताव के बाद IAEA अब अगस्त में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, जिसमें अनुपालन विफलता का उल्लेख होगा।
- सुरक्षा परिषद में चीन और रूस द्वारा वीटो की संभावना बनी हुई है, हालांकि उन्होंने इस बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है।
आगे की दिशा
ईरान के पास अब सीमित समय है ताकि वह IAEA की चिंताओं का उत्तर दे सके। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो मामला सुरक्षा परिषद तक बढ़ सकता है, जहां प्रतिबंधों को पुनः लागू किया जा सकता है। अमेरिका पहले ही “विशेष निरीक्षण” की मांग का समर्थन कर चुका है, और IAEA प्रमुख ग्रोसी “तकनीकी संवाद” की पेशकश कर चुके हैं।
IAEA का यह कड़ा कदम, इज़राइली सैन्य कार्रवाई और ईरान की जवाबी चेतावनियाँ – तीनों मिलकर पश्चिम एशिया को एक नए परमाणु संकट की ओर धकेल रहे हैं। अक्टूबर 2025 के प्रतिबंध समाप्ति की समयसीमा से पहले यह संकट और गहराने की आशंका है, जो वैश्विक शांति, ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन को चुनौती दे सकता है।