ईरान-इज़राइल संघर्ष और भारत की खाद्य सुरक्षा: उर्वरकों पर मंडराता संकट

जब पूरी दुनिया की नजरें ईरान-इज़राइल संघर्ष के चलते कच्चे तेल की कीमतों पर टिकी हैं, भारत जैसे कृषि-प्रधान देश के लिए एक और गंभीर संकट उर्वरक सुरक्षा को लेकर उभर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि उर्वरक की आपूर्ति में बाधा देश की खाद्य प्रणाली और आर्थिक स्थिरता पर गहरा असर डाल सकती है।

भारत की उर्वरक निर्भरता और जोखिम

भारत अपने उर्वरकों — जैसे यूरिया, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), और एमओपी (म्यूरिएट ऑफ पोटाश) — का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। खाड़ी देशों से भारत ने 2023 में कुल आयात का 20-25% उर्वरक मंगाया। इनकी आपूर्ति अधिकतर स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ से होती है — एक संवेदनशील समुद्री मार्ग जो क्षेत्रीय संघर्षों से प्रभावित हो सकता है। ईरान-इज़राइल युद्ध की स्थिति में इस मार्ग पर खतरा बढ़ जाता है।

कौन-कौन से उर्वरक सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे?

  • यूरिया: भारत लगभग 20% यूरिया खाड़ी देशों से मंगाता है।
  • डीएपी: भारत का 60% डीएपी आयात खाड़ी और पश्चिमी एशियाई देशों से होता है।
  • एमओपी: 100% आयातित है, मुख्य रूप से कनाडा, बेलारूस और इज़राइल से।

डीएपी और यूरिया पर सबसे तात्कालिक खतरा मंडरा रहा है, विशेषकर खाड़ी मार्गों के बाधित होने की स्थिति में।

क्या भारत तैयार है ऐसे संकटों से निपटने के लिए?

भारत में उर्वरक आपूर्ति केंद्र सरकार के नियंत्रण में है, लेकिन रणनीतिक भंडारण की कमी सबसे बड़ी कमजोरी है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ केवल 30-45 दिनों का स्टॉक रखती हैं। इससे किसी भी अंतरराष्ट्रीय अवरोध का सीधा असर किसानों तक जल्दी पहुँचता है, खासकर खरीफ (जून-जुलाई) और रबी (अक्टूबर-नवंबर) बुवाई के मौसम में।

आत्मनिर्भरता की सीमाएँ

सरकार 2025 तक यूरिया में 90% आत्मनिर्भरता का लक्ष्य लेकर चल रही है, लेकिन डीएपी और एमओपी में कच्चे माल की कमी आत्मनिर्भरता की राह में बड़ी बाधा है। भारत मोरक्को, कनाडा, जॉर्डन आदि से संयुक्त उपक्रम और दीर्घकालिक समझौते कर रहा है, लेकिन यह प्रयास अभी पर्याप्त नहीं हैं।

छोटे किसानों पर सीधा प्रभाव

भारत की उर्वरक सब्सिडी नीति छोटे किसानों को राहत देने के लिए बनी है, लेकिन यह पूरी तरह असरदार नहीं है:

  • यूरिया: सरकार द्वारा पूरी तरह सब्सिडी प्राप्त, सीमित मूल्य पर उपलब्ध।
  • डीएपी/एमओपी: पोषक तत्व आधारित सब्सिडी योजना (NBS) के अंतर्गत आते हैं, जिसमें वैश्विक कीमतों के बढ़ने पर खुदरा मूल्य बढ़ सकता है।

सब्सिडी की देरी और आपूर्ति बाधाएं छोटे किसानों को सीधे प्रभावित करती हैं। साथ ही, सब्सिडी पर बढ़ता बोझ सरकार के लिए दीर्घकालिक कृषि निवेशों में कटौती का कारण बन सकता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत की उर्वरक सब्सिडी योजना में हर साल ₹2.25–2.5 लाख करोड़ खर्च होता है।
  • यूरिया भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला उर्वरक है।
  • स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ से विश्व का एक तिहाई तरल प्राकृतिक गैस गुजरता है।
  • मोरक्को के पास दुनिया के 70% फॉस्फेट भंडार हैं, जो डीएपी के लिए आवश्यक हैं।

भविष्य की राह: क्या करना चाहिए?

  1. रणनीतिक भंडारण नीति तैयार करना।
  2. आयात स्रोतों का विविधीकरण — मोरक्को, कनाडा, जॉर्डन जैसे देशों के साथ मजबूत साझेदारी।
  3. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा — विशेषकर यूरिया और वैकल्पिक उर्वरकों (जैसे जैविक, नैनो) के क्षेत्र में।
  4. लंबी अवधि के आयात अनुबंध और वैकल्पिक शिपिंग मार्गों की योजना।

यदि ये संकट जारी रहते हैं तो 2025 के खरीफ और रबी मौसमों पर गंभीर असर पड़ सकता है। खाद्य उत्पादन, किसान आय और सामाजिक स्थिरता — तीनों ही दांव पर होंगे। ऐसे में उर्वरक सुरक्षा को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का हिस्सा बनाना अब आवश्यकता नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *