ईको-संवेदनशील क्षेत्रों के दिशानिर्देशों की समीक्षा की सिफारिश: संरक्षण बनाम स्थानीय विकास की नई सोच

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की स्थायी समिति (SC-NBWL) ने संरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर स्थापित ईको-संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा की सिफारिश की है। समिति ने कहा कि इन क्षेत्रों के लिए “लचीला” और “स्थल-विशिष्ट” दृष्टिकोण अपनाया जाए, जिससे संरक्षण के लक्ष्य और स्थानीय सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं के बीच संतुलन बना रहे।
ESZ क्या हैं और क्यों ज़रूरी हैं?
ईको-संवेदनशील क्षेत्र वे बफर ज़ोन होते हैं जो राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और संरक्षित जंगलों के चारों ओर बनाए जाते हैं ताकि वन्यजीवों और जैव विविधता को मानवीय गतिविधियों से बचाया जा सके। इनमें खनन, भारी निर्माण और प्रदूषणकारी उद्योगों पर रोक होती है, जबकि कृषि, ईको-पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा जैसी गतिविधियों को सीमित अनुमति दी जाती है।
सख्त नियम हर जगह उचित नहीं
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने 26 जून को हुई बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा, “10 किलोमीटर की एक समान ESZ सीमा सभी क्षेत्रों के लिए उचित नहीं है। कई बार यह स्थानीय पारिस्थितिकी और भौगोलिक स्थितियों को नजरअंदाज कर देती है।” उन्होंने असोला, सुखना, हस्तिनापुर और संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान जैसे उदाहरण दिए जहाँ वर्तमान नियम जमीनी स्तर पर समस्याएं पैदा कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश के मुख्य वन्यजीव वार्डन ने कहा कि राज्य की 65% भूमि पहले से ही वन क्षेत्र में है, ऐसे में कठोर ESZ नियमों से विकास बाधित हो सकता है। अन्य राज्यों जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने भी ESZ लागू करने से उत्पन्न समस्याएं बताईं।
स्थान विशेष के अनुरूप नियमों की माँग
NBWL सदस्य एच. एस. सिंह ने कहा कि ESZ के लिए बनाए गए नियमों को अक्सर राज्यों द्वारा कठोर रूप में लागू किया जाता है, जबकि इन्हें लचीलेपन के साथ लागू किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, गुजरात में एक प्रस्तावित अभयारण्य के आसपास उन्होंने तीन किलोमीटर तक रेत खनन पर प्रतिबंध की सिफारिश की थी, लेकिन नोटिफिकेशन में पूरी तरह खनन पर रोक लग गई।
कर्नाटक ने सुझाव दिया कि किसी नए संरक्षित क्षेत्र की घोषणा के बाद ESZ लागू करने से पहले दो साल की संक्रमणकालीन अवधि दी जाए। वहीं तमिलनाडु ने कहा कि मौजूदा कठोर नियमों के कारण नए संरक्षित क्षेत्रों की घोषणा टाली जा रही है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ESZ की शुरुआत: सुप्रीम कोर्ट और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2002 के बाद संरक्षित क्षेत्रों के बफर ज़ोन के रूप में शुरू किया गया था।
- Zonal Master Plan (ZMP): ESZ क्षेत्रों के लिए बनाया गया विकास और संरक्षण संतुलन योजना।
- NBWL: भारत सरकार का एक शीर्ष निकाय जो वन्यजीव संरक्षण नीतियों की निगरानी करता है।
- Silent Valley उदाहरण: केरल में 150 वर्ग किमी क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने का प्रस्ताव इस डर से खारिज किया गया कि इससे ESZ प्रतिबंध स्वतः लागू हो जाएंगे।
आगे की प्रक्रिया और सुझाव
SC-NBWL ने पर्यावरण मंत्रालय को इस मुद्दे पर विस्तृत नोट तैयार करने और ESZ एवं वन्यजीव प्रभागों की संयुक्त बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया है। सभी संबंधित विभागों और राज्य सरकारों की राय के बाद संशोधित सिफारिशें अंतिम रूप में समिति को सौंपी जाएंगी।
ESZ दिशानिर्देशों की समीक्षा की यह पहल संरक्षण की भावना को बनाए रखते हुए स्थानीय लोगों के हितों और विकास की जरूरतों को भी संतुलित करने की दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है। यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि संरक्षण नीतियाँ ज़मीन पर व्यावहारिक और जनहितकारी हों।