आर्थिक समीक्षा 2025: मुद्रास्फीति नियंत्रण में, ब्याज दरों में कटौती की और संभावना

वित्त मंत्रालय द्वारा जारी जून 2025 की मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि मुद्रास्फीति अब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के 4% लक्ष्य से नीचे बनी हुई है, और वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के लिए निर्धारित 3.7% के अनुमान से भी कम रह सकती है। यह संकेत करता है कि मौद्रिक नीति में सहजता की प्रक्रिया आगे भी जारी रह सकती है।

ब्याज दरों में कटौती और क्रेडिट ग्रोथ की सुस्ती

रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने फरवरी से जून 2025 के बीच 100 बेसिस पॉइंट्स की दर से ब्याज दरों में कटौती की है। हालांकि, इसके बावजूद अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ घटकर 10.4% रह गई है, जो पिछले वर्ष 13.9% थी।
रिपोर्ट में यह चिंता जताई गई है कि सुस्त क्रेडिट ग्रोथ, निजी निवेश में अनिच्छा और वैश्विक आर्थिक मंदी के जोखिम भारत की आर्थिक गति को बाधित कर सकते हैं। इसके पीछे सावधान उधारकर्ताओं का रुख और बैंकों की जोखिम से बचने की प्रवृत्ति भी एक कारण मानी गई है।

मुद्रास्फीति के बादल छंटे, निवेश की बारी

वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य मुद्रास्फीति का दबाव कम हुआ है, जिससे RBI को और दरों में कटौती की गुंजाइश मिल सकती है। साथ ही, निजी कंपनियों द्वारा बॉन्ड मार्केट (विशेषकर कमर्शियल पेपर) की ओर झुकाव भी देखा गया है, जिससे परंपरागत बैंक ऋण में कमी आई है।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में यह चिंता जताई कि निजी क्षेत्र, मजबूत बैलेंस शीट के बावजूद, पूंजीगत व्यय के बजाय निष्क्रिय निवेश को तरजीह दे रहा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • RBI का मुद्रास्फीति लक्ष्य 4% है, जिसमें 2% तक की ऊपर-नीचे की गुंजाइश है।
  • फरवरी से जून 2025 तक ब्याज दरों में 100 आधार अंकों की कटौती की गई है।
  • जून 2025 तक SCBs की क्रेडिट ग्रोथ घटकर 10.4% हो गई, जबकि पिछले वर्ष यह 13.9% थी।
  • FY26 के पहले दो महीनों (अप्रैल-मई) में सकल FDI प्रवाह $15.9 बिलियन रहा, जिसमें 5% की सालाना वृद्धि दर्ज हुई।

विदेशी निवेश और निर्यात पर नजर

FY25 में शुद्ध FDI और FPI प्रवाह में गिरावट देखी गई थी, लेकिन FY26 की शुरुआत में इसमें सुधार के संकेत मिल रहे हैं। डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में विश्वास बढ़ा है, जिससे विदेशी निवेशकों का रुझान दोबारा भारत की ओर हो सकता है।
हालांकि, अमेरिका में मंदी और टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताओं से निर्यात पर दबाव बना रह सकता है। सरकार ने इसे भारत के आगामी तिमाहियों के व्यापार प्रदर्शन के लिए एक जोखिम कारक माना है।

आगे की दिशा

रिपोर्ट के अनुसार, FY26 की पहली तिमाही में घरेलू आपूर्ति और मांग दोनों स्थिर रही हैं, और मानसून सामान्य रहने की उम्मीद से दूसरी तिमाही भी मजबूत शुरुआत कर रही है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण में, सेमीकंडक्टर, रियर अर्थ तत्वों और मैग्नेट जैसे क्षेत्रों में भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अवसर मिल सकते हैं।
इस प्रकार, मुद्रास्फीति की नरमी और सुधार के संकेत दे रहे विदेशी निवेश से यह स्पष्ट है कि भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में संतुलन बनाए हुए है। अब आवश्यकता है कि निजी क्षेत्र सक्रिय रूप से पूंजी निवेश करे, जिससे विकास की गति और तेज हो सके।

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