आरक्षण पर नई बहस: 85% आरक्षण की घोषणा और ‘क्रीमी लेयर’ पर सुप्रीम कोर्ट की पहल

बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव द्वारा 85% आरक्षण की घोषणा और सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ की मांग पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने की खबर ने देशभर में आरक्षण नीति पर बहस को नई दिशा दे दी है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब भारत में सामाजिक न्याय, संविधान की समानता की अवधारणा, और आरक्षण की न्यायिक सीमाएं एक बार फिर टकरा रही हैं।
संविधान में आरक्षण का प्रावधान
- अनुच्छेद 15(4): शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्गों, SCs और STs के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति।
- अनुच्छेद 16(4): सरकारी नौकरियों में समान अवसर के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की अनुमति।
वर्तमान केंद्रीय आरक्षण:
- OBC: 27%
- SC: 15%
- ST: 7.5%
- EWS: 10%
- कुल आरक्षण: 59.5%
न्यायपालिका की दृष्टि
- बालाजी बनाम मैसूर राज्य (1962): आरक्षण की सीमा “उचित” होनी चाहिए, 50% से अधिक नहीं।
- NM थॉमस केस (1975): आरक्षण को समान अवसर का विस्तार माना गया, न कि अपवाद।
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इंद्रा साहनी केस (1992):
- OBC आरक्षण 27% मंजूर
- 50% सीमा को दोहराया, केवल असाधारण परिस्थितियों में छूट संभव
- OBC में ‘क्रीमी लेयर’ को बाहर रखने की शुरुआत
- जनहित अभियान केस (2022): EWS आरक्षण 10% वैध माना, क्योंकि यह आरक्षण ‘पिछड़े वर्गों’ के लिए नहीं है।
SC/ST में ‘क्रीमी लेयर’ की बहस
- दविंदर सिंह केस (2024): सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से SC/ST में ‘क्रीमी लेयर’ नीति लागू करने पर विचार करने को कहा।
- सरकार का जवाब: अगस्त 2024 की कैबिनेट बैठक में केंद्र ने ‘क्रीमी लेयर’ को SC/ST आरक्षण में लागू करने से इनकार किया।
विरोधियों की दलीलें:
- SC/ST कोटे में वैसे भी 40-50% पद खाली, इसलिए ‘क्रीमी लेयर’ का सवाल ही नहीं उठता।
- ‘क्रीमी लेयर’ लागू करने से पद रिक्तियाँ और बढ़ सकती हैं, जो अंततः अनारक्षित कोटे में बदल दी जा सकती हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ● भारत में आरक्षण का आधार समाजशास्त्रीय पिछड़ापन, जातिगत उत्पीड़न और प्रतिनिधित्व की कमी है।
- ● रोहिणी आयोग ने पाया कि OBC में से केवल 25% जातियाँ 97% आरक्षण लाभ ले रही हैं।
- ● भारत में पिछड़ा वर्ग जनगणना 2027 में प्रस्तावित है, जिससे आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध होंगे।
- ● EWS आरक्षण लागू होने से 50% सीमा का विस्तार पहली बार किया गया।
85% आरक्षण की मांग: संवैधानिक और व्यावहारिक पहलू
- संवैधानिक चुनौती: इतनी अधिक आरक्षण सीमा को “समान अवसर के मौलिक अधिकार” के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।
- जनांकिकीय तर्क: आरक्षण का प्रतिशत पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ाया जाए — इसके लिए जातीय जनगणना अनिवार्य।
- सार्वजनिक क्षेत्र में सीमित अवसरों के कारण आरक्षण से सभी वर्गों की अपेक्षाएँ पूरी नहीं हो सकतीं।
आगे का रास्ता: संतुलन और न्याय
- वास्तविक आंकड़ों पर आधारित सार्वजनिक विमर्श जरूरी
- OBC में उप-श्रेणीकरण (रोहिणी आयोग की सिफारिश) को जल्द लागू किया जाए
- SC/ST में ‘दो-स्तरीय आरक्षण प्रणाली’ (अत्यंत वंचित वर्गों को प्राथमिकता) पर विचार
- कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा, ताकि युवा सरकारी नौकरियों से परे अवसरों की ओर बढ़ सकें
भारत में आरक्षण केवल नौकरी और शिक्षा का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान और समानता की पुनर्प्राप्ति का औजार है। लेकिन यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि यह औजार सही हाथों तक पहुँचे, और हर स्तर पर संतुलन और न्याय बना रहे।