आपदा राहत कानून की अनिवार्यता: राहत नहीं, अधिकार बनाएं

हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में हाल की भीषण आपदाएं—बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं—ने एक बार फिर भारत की आपदा प्रबंधन व्यवस्था की खामियों को उजागर कर दिया है। इन आपदाओं ने केवल भौगोलिक संवेदनशीलता ही नहीं, बल्कि नीतिगत अपर्याप्तता को भी उजागर किया है। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत को स्थायी, कानूनी रूप से बाध्यकारी आपदा राहत कानून की सख्त जरूरत है।

वर्तमान प्रणाली: प्रतिक्रियात्मक नहीं, सक्रिय बनें

  • राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि (NDRF) और राज्य आपदा मोचन निधि (SDRF) जैसे प्रावधान तो हैं, लेकिन उनका आवंटन अपर्याप्त, रिलीज़ में देरी और राजनीतिक सौदेबाज़ी से प्रभावित होता है।
  • राहत तब तक नहीं आती जब तक नुकसान का आकलन पूरा नहीं हो जाता, और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

‘अधिकार’ के रूप में राहत क्यों जरूरी है?

  • आपदाएं अब अपवाद नहीं, स्थायी वास्तविकता बन गई हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता और भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
  • मौजूदा ‘एड हॉक’ मॉडल में राहत केवल नेताओं की घोषणाओं और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर है — यह स्थिति अस्वीकार्य है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ● भारत में 40 मिलियन हेक्टेयर भूमि बाढ़ की चपेट में आने वाली है।
  • ● 1980 से 2024 तक पंजाब में लगभग 13 मिलियन लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।
  • हिमाचल प्रदेश ने केवल 2024 के मानसून में ही ₹2,348 करोड़ का नुकसान दर्ज किया।
  • ₹2 लाख करोड़ की अप्रयुक्त राशि विभिन्न वित्तीय क्षेत्रों (बैंक, EPFO, बीमा, शेयर बाजार, आदि) में पड़ी है, जो 15–20% की दर से बढ़ रही है।

क्या यह अप्रयुक्त धन आपदा राहत में प्रयोग हो सकता है?

  • सुप्रीम कोर्ट ने Central Unclaimed Property Authority (CUPA) की स्थापना की सिफारिश की है।
  • यह संस्था ₹2 लाख करोड़ की निष्क्रिय निधियों को ट्रैक और उपयोग करने का केंद्रीय माध्यम बन सकती है।
  • इस धन का उपयोग आपदा राहत और पुनर्वास कार्यों में होना, राजकोषीय नैतिकता और सामाजिक न्याय का आदर्श उदाहरण हो सकता है।

हिमालयी राज्यों से मिले सबक

  • हिमाचल, उत्तराखंड और कश्मीर जैसे क्षेत्र भू-गर्भीय रूप से नाजुक हैं और मानव अतिक्रमण के कारण और भी असुरक्षित हो गए हैं।
  • पंजाब जैसे राज्य, जहाँ बाढ़ बार-बार आती है, वहाँ स्थायी जल प्रबंधन, ड्रेनेज सिस्टम और फ्लड कंट्रोल इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश नहीं किया गया।

प्रस्तावित आपदा राहत कानून: आवश्यक विशेषताएँ

  • वैज्ञानिक जोखिम आकलन के आधार पर पूर्व-निर्धारित फंड की व्यवस्था
  • स्वचालित राहत वितरण: आपदा के 3–5 दिनों के भीतर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से राहत
  • दीर्घकालिक पुनर्वास योजना: घर, स्वास्थ्य सेवा, आजीविका और बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण
  • जवाबदेही तंत्र: देरी या कुप्रबंधन पर सरकारी अधिकारियों की सीधी जवाबदेही

निष्कर्ष: यह केवल कानून नहीं, नैतिक जिम्मेदारी है

भारत को अब प्रतिक्रियात्मक नहीं, सक्रिय आपदा प्रबंधन की ओर बढ़ना होगा। राहत पैकेज अब कृपा नहीं, अधिकार बनने चाहिए। संसद को तत्काल आपदा राहत कानून पारित करना चाहिए, जो आपदाओं के बाद की पीड़ा को कम कर सके और पुनर्निर्माण को गति दे
यह कानून केवल प्रशासनिक सुधार नहीं होगा, बल्कि यह सरकार की मानवीय प्रतिबद्धता का प्रमाण होगा। आपदाएं रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन उनसे जुड़ी पीड़ा और नुकसान को कम किया जा सकता है — और यही हमारे लोकतंत्र और शासन प्रणाली की परीक्षा है।

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