आदिलाबाद के मुल्लगुट्टा गांव में कोलाम जनजाति के लिए बांस परियोजना की नई शुरुआत

आदिलाबाद जिले के मुल्लगुट्टा 2 गांव में कोलाम जनजाति के जीवनस्तर को सुधारने और उनके पारंपरिक आजीविका स्रोत को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से ‘ग्रीन इंडिया चैलेंज’ (GIC) द्वारा एक पायलट बांस वृक्षारोपण परियोजना शुरू की गई है। यह पहल न केवल पर्यावरणीय क्षरण को रोकने की दिशा में एक कदम है, बल्कि ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह’ (PVTG) में शामिल कोलाम जनजातियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है।
कोलाम जनजाति की पारंपरिक आजीविका की बहाली
कोलाम जनजातियों की आजीविका पारंपरिक रूप से बांस पर आधारित रही है, जिससे वे हस्तशिल्प वस्तुएं बनाते थे। लेकिन हाल के वर्षों में वन संसाधनों तक सीमित पहुँच और प्राकृतिक बांस की उपलब्धता में कमी ने उनकी आजीविका पर गहरा असर डाला है। इस संकट को दूर करने के लिए GIC ने बांस की कृत्रिम खेती की योजना तैयार की है।
इस योजना के तहत, मुल्लगुट्टा 2 गांव में 5 एकड़ भूमि पर बांस का वृक्षारोपण किया गया है। यह भूमि स्थानीय समाजसेवी टेकम राव जी पटेल द्वारा दान की गई है। इस प्रयास के तहत कोलाम जनजातियों को न केवल बांस की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी, बल्कि उन्हें आधुनिक बांस शिल्पकला में प्रशिक्षित भी किया जाएगा।
सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल
पूर्व राज्यसभा सदस्य और ग्रीन इंडिया चैलेंज के संस्थापक संतोष जोगिनापल्ली के नेतृत्व में शुरू की गई यह परियोजना न केवल आर्थिक विकास को लक्षित करती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक असंतुलन जैसे मुद्दों को भी संबोधित करती है। बांस एक तेजी से बढ़ने वाला पौधा है जो मिट्टी के क्षरण को रोकता है, कार्बन को अवशोषित करता है और वर्षा जल को संरक्षित करने में सहायक होता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कोलाम जनजाति को भारत सरकार द्वारा PVTG (Particularly Vulnerable Tribal Group) की श्रेणी में शामिल किया गया है।
- ग्रीन इंडिया चैलेंज की स्थापना 2018 में संतोष जोगिनापल्ली द्वारा की गई थी।
- बांस की लगभग 136 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं, जिनमें से कई आदिवासी समुदायों की आजीविका का आधार हैं।
- आदिलाबाद जिला तेलंगाना राज्य का एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहाँ कोलाम, गोंड, और अन्य जनजातियाँ निवास करती हैं।
इस परियोजना की सफलता कोलाम जनजातियों के लिए एक नया आशा का स्रोत बन सकती है और साथ ही यह मॉडल देश के अन्य हिस्सों में भी दोहराया जा सकता है, जहाँ जनजातीय समुदाय बांस पर आधारित हस्तशिल्प और आजीविका में संलग्न हैं।