अल्पाइन कस्तूरी मृग संरक्षण में गंभीर चूक: भारत में पहचान की गलती से संकट गहराया

केंद्र सरकार की ज़ू प्राधिकरण (CZA) की हालिया रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है — भारत में अल्पाइन कस्तूरी मृग (Moschus chrysogaster) के संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत ही गलत पहचान पर आधारित रही है। रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड में जिन प्रजातियों पर संरक्षण का प्रयास किया गया, वे संभवतः हिमालयी कस्तूरी मृग (Moschus leucogaster) थीं, न कि संकटग्रस्त अल्पाइन कस्तूरी मृग।
गलत पहचान और विफल प्रयास
दिसंबर 2024 में प्रकाशित रिपोर्ट “Planned Breeding Programs in Indian Zoos: Assessment and Strategic Actions” के अनुसार, चोपता (उत्तराखंड) और दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) के ज़ूलॉजिकल पार्कों में जो कस्तूरी मृग संरक्षित किए गए, वे अल्पाइन मृग नहीं थे। अब तक किसी भी भारतीय ज़ू में अल्पाइन मृग की कैद में मौजूदगी दर्ज नहीं की गई है, जिससे स्पष्ट होता है कि इनका कोई संरक्षित प्रजनन कार्यक्रम कभी शुरू ही नहीं हुआ।
इससे देश में इस प्रजाति की वास्तविक संख्या को लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं है। 1980 के दशक में ‘Beauty Without Cruelty’ संस्था के अनुसार जंगल में लगभग 1,000 अल्पाइन कस्तूरी मृग थे, लेकिन अब तक कोई ताज़ा गणना उपलब्ध नहीं है। IUCN की 2014 रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रजाति की जनसंख्या घट रही है और इसे ‘अत्यंत संकटग्रस्त’ श्रेणी में रखा गया है।
CZA और भारत की प्रजनन योजनाएं
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण (CZA), जो 1992 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के अंतर्गत स्थापित हुआ था, भारत में कैद प्रजनन कार्यक्रमों का केंद्रीय निकाय है। 2022 में इस अधिनियम में संशोधन कर ‘ज़ू’ की परिभाषा में संरक्षण प्रजनन केंद्रों को भी शामिल किया गया, जिससे इन केंद्रों पर निगरानी और नियमन बढ़ गया।
2006 से 2021 के बीच कुल ₹28.94 करोड़ राशि भारत में संरक्षित प्रजनन कार्यक्रमों पर खर्च की गई, लेकिन RTI के माध्यम से पता चला कि मंत्रालय के पास विशेष रूप से कस्तूरी मृग पर खर्च की जानकारी नहीं है। इसका उत्तर था कि प्रबंधन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, जबकि केंद्र सहायता प्रदान करता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अल्पाइन कस्तूरी मृग IUCN की ‘Critically Endangered’ श्रेणी में है।
- केंद्र सरकार द्वारा अब तक 74 प्रजातियों की पहचान संरक्षित प्रजनन के लिए की गई, जिनमें 26 को प्राथमिकता दी गई।
- एक सफल प्रजनन कार्यक्रम का लक्ष्य 250 वंशावली वाले मृगों की आबादी खड़ा करना था।
- भारत का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 देश में संरक्षित क्षेत्रों और प्रजातियों की सुरक्षा के लिए प्रमुख कानून है।
विशेषज्ञों की चिंता और आगे की राह
वन्यजीव संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ जैवविज्ञानी बी. सी. चौधरी ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमारे पास न तो कोई संस्थापक समूह है और न ही सही पहचान। हम प्रजनन विज्ञान पर कैसे काम कर सकते हैं?” उन्होंने यह भी कहा कि भारत में अब तक के कस्तूरी मृग प्रजनन कार्यक्रम पूरी तरह असफल रहे हैं।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि अब किसी नई प्रजाति को योजना में जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि पहले से मौजूद योजनाओं को सटीकता और वैज्ञानिकता के साथ क्रियान्वित करना ज़रूरी है। साथ ही, यह सुझाव दिया गया कि IUCN रेड लिस्ट के साथ-साथ भारत को अपनी राष्ट्रीय संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची तैयार करनी चाहिए।
निष्कर्ष
कस्तूरी मृग जैसे संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए गलत पहचान पर आधारित संरक्षण प्रयास केवल संसाधनों की बर्बादी ही नहीं, बल्कि जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा भी हैं। CZA की यह रिपोर्ट भारतीय संरक्षण प्रणाली में पारदर्शिता, सटीक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और जमीनी क्रियान्वयन की कमी को उजागर करती है। अगर भारत को अपनी दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों को बचाना है, तो पहचान, निगरानी और नीति क्रियान्वयन के स्तर पर तत्काल सुधार की आवश्यकता है।