सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकांत त्रिपाठी 22 जनवरी, 1896 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में एक उच्च जाति के हिंदू ब्राह्मण परिवार से थे। वह एक सरकारी सेवक पंडित रामसहाय त्रिपाठी के बेटे थे। वह एक जन्मजात प्रतिभा थी। मैट्रिक के बाद उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। लेकिन अपनी प्राकृतिक बुद्धिमत्ता के माध्यम से उन्होंने संस्कृत, बंगाली और अंग्रेजी साहित्य में बहुत बड़ा ज्ञान प्राप्त किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी `निराला` का जीवन त्रासदियों से भरा हुआ था। कम उम्र में उनकी माँ की मृत्यु हो गई। वह लखनऊ के गढ़ाकोला चले गए जहाँ उनके पिता मूल रूप से थे। उन्होंने बहुत कम उम्र में अनोहर देवी से शादी कर ली, लेकिन उनकी मृत्यु हो गई जब वह केवल 20 साल की थीं। कुछ वर्षों के बाद उनकी एकमात्र बेटी की मृत्यु हो गई जो विधवा थी। त्रिपाठी को भी गहरे वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा। जब वह बंगाल में थे, तो वे रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और रवींद्रनाथ टैगोर से बहुत प्रभावित थे। उनकी शादी के बाद उनकी पत्नी ने उन्हें हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया। हिंदी सीखने के बाद उन्होंने बंगाली के बजाय हिंदी भाषा में लिखना शुरू किया। वह अपनी सामग्री और लेखन शैली दोनों में बहुत विद्रोही थे। वह सामाजिक प्रतिष्ठान और प्राधिकरण के भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूती से खड़े थे। उन्होंने लेखन के माध्यम से सामाजिक अन्याय और शोषण का विरोध किया। इसके लिए उन्हें कई आलोचनाओं को झेलना पड़ा।

सूर्यकांत त्रिपाठी `निराला` ने कविता के 12 संकलन लिखे। इसके अलावा उन्होंने छह उपन्यास, कई लघु कथाएँ, निबंध और आलोचना की। वह भारतीय नवजागरण से काफी प्रेरित थे, जो बंगाल में फला-फूला और आधुनिक युग में नई कविता की शुरुआत करने की कोशिश की। उन्होंने चित्रकला में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने कई रेखाचित्र खींचे। उन्होंने कई प्रसिद्ध बंगाली साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया। 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया।

सूर्यकांत त्रिपाठी `निराला` छायावाद आंदोलनों के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। उन्होंने अपने कार्यों में प्रकृति और प्रगतिशील मानवतावादी विचारधारा के लिए वेदांत, राष्ट्रवाद, रहस्यवाद और प्रेम के दर्शन को मिलाया। उन्होंने अपनी कविताओं में रिक्त कविता का उपयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों के लिए छद्म नाम निराला को लिया। उनकी बनाई हुई रेखाएं सहानुभूति के गहरे कुओं में चुभती हैं और कुएं के अतिप्रवाह तक स्टिंग लिंग काफी लंबे समय तक चलता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी `निराला` की प्रमुख कृतियाँ हैं- आराधना, सरोज स्मृति, परिमल, अनामिका, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अदिमा, बेला, नाये पटे, अर्चना, तुलसीदास, अप्सरा, अलका, प्रभाती, निरुपमा, चम उच्छृंखलताकले,चतुरी चमार, सुकुल की बीवी, सखी, लिली, देवी, प्रबन्ध-परिचय, प्रबन्ध-प्रतिभा, बंगभाषा-का-उचिचरण। इसके अलावा आनंद मठ, विश्व-वृक्ष, कृष्ण कांत का विल, कपल कुंडला, दुर्गेश नंदिनी, राज सिंह, राज रानी, ​​देवी चौधरानी, चंद्रशेखर, रजनी, का अनुवाद भी किया।

उनके बारे में नागार्जुन ने लिखा है-
“बाल झबरे, दृष्टि पैनी, फटी लुंगी नग्न तन
किन्तु अन्तर्दीप्‍त था आकाश-सा उन्मुक्त मन
उसे मरने दिया हमने, रह गया घुटकर पवन
अब भले ही याद में करते रहें सौ-सौ हवन”

Originally written on September 28, 2019 and last modified on September 28, 2019.

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