राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम

राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम

दो शब्द ‘वंदे मातरम’ हर भारतीय को रोमांचित करने वाले शब्द हैं। यह भारत का राष्ट्रीय गीत है। वंदे मातरम गीत को बंकिम चंद्र चटर्जी ने बंगाली और संस्कृत की एक विशेष बोली में लिखा था। 1896 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सत्र में इस गीत को गाया गया था। वंदे मातरम गीत भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में लोकप्रिय था। 1870 के दशक के शुरुआती दिनों में लिखा गया मूल संस्करण कुछ वर्षों तक अप्रकाशित रहा। 1881 में वंदे मातरम को आनंदमठ उपन्यास में शामिल किया गया था। वंदे मातरम की लोकप्रियता ने भारतीय राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में सहयोग किया। वंदे मातरम के नारे को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ वंदे मातरम के ऐतिहासिक जुड़ाव ने धीरे-धीरे इसे राष्ट्रवादी आंदोलन का जीवंत और अविभाज्य अंग बना दिया। इसलिए यह निर्विवाद है कि वंदे मातरम की व्यापक अपील और लोकप्रियता और सार्वजनिक भावना पर इसकी पकड़ अभी भी अभूतपूर्व है। वंदे मातरम में प्रयुक्त कल्पना ने गीत की लोकप्रियता का समर्थन किया। 2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में सभी समय के दस सबसे प्रसिद्ध गीतों का चयन किया। बीबीसी के अनुसार 155 देशों और द्वीपों में फैले लोगों ने वंदे मातरम को शीर्ष 10 गीतों में दूसरा स्थान दिया।
वंदे मातरम का इतिहास
कहा जाता है कि बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपनी प्रसिद्ध कविता की रचना की थी जब वह ब्रिटिश सरकार के अधीन थे। यह गीत 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में लिखा गया था। वंदे मातरम को आखिरकार बंकिम चंद्र के उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया।
पूर्व-स्वतंत्र समाज में वंदे मातरम
भारतीय राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का पूर्व-स्वतंत्र समाज में इसका प्रभाव उदात्त था। वन्दे मातरम् को गली-गली से सुना जा सकता है,
पूर्व-स्वतंत्र समाज में वंदे मातरम के प्रभाव
पूर्व-स्वतंत्र समाज में वंदे मातरम के भारतीय राष्ट्रीय गीत प्रभाव की अपनी एक अलग तस्वीर है। हर विरोध मार्च, हर सभा, हर रो ने उन दो विशेष शब्दों को उद्धृत किया। अंग्रेज वास्तव में वंदे मातरम से बेहद भयभीत थे और इसका असर युवाओं पर पड़ा। मूल रूप से ब्रिटिश आबादी के खिलाफ मूल निवासी विरोध प्रदर्शन किया गया था। पूर्व-स्वतंत्र भारत में वंदे मातरम के प्रभावों को पुन: परिभाषित करने की प्रक्रिया में शिक्षाप्रद वर्ग, श्रमिक वर्ग, मध्यम वर्ग के लोगों के लिए यह प्रेरणास्रोत बन गया।

Originally written on April 11, 2021 and last modified on April 11, 2021.

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