दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में भारत की प्रगति: खनिज शक्ति से वैश्विक नेतृत्व की ओर

भारत धीरे-धीरे वैश्विक खनन परिदृश्य में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहा है, विशेष रूप से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Elements – REEs) के क्षेत्र में। राजस्थान के सिरोही और भीलवाड़ा जिलों में हाल ही में नियोडिमियम जैसे महत्वपूर्ण REE की खोज और आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में प्रमुख भंडारों की पहचान इस दिशा में भारत की रणनीतिक क्षमता को दर्शाते हैं। यह प्रगति केवल खनन नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी, नवाचार, स्टार्टअप्स और कौशल विकास से जुड़ा एक समग्र दृष्टिकोण है।

क्या हैं दुर्लभ पृथ्वी तत्व?

दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की “विटामिन” कहा जाता है। ये तत्व 15 लैंथेनाइड्स (57–71), स्कैंडियम और यट्रियम को मिलाकर बनाए गए समूह का हिस्सा हैं। इन्हें दो श्रेणियों में बांटा गया है:

  • हल्के दुर्लभ पृथ्वी तत्व (LREEs) — जैसे लैंथेनम, सिरीयम, प्रासोडियम, नियोडिमियम
  • भारी दुर्लभ पृथ्वी तत्व (HREEs) — जो तुलनात्मक रूप से कम पाए जाते हैं लेकिन अधिक मूल्यवान होते हैं

ये तत्व उच्च तापीय स्थिरता, ऊर्जा दक्षता, और रंग निर्धारण जैसी विशिष्ट भौतिक व रासायनिक विशेषताओं के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, स्वच्छ ऊर्जा, ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और औद्योगिक मशीनरी में अत्यंत उपयोगी हैं।

भारत में रणनीतिक पहल

भारत सरकार ने REE क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की हैं:

  • नेशनल मिनरल मिशन — नवाचार, खनन-प्रसंस्करण, ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग, और स्टार्टअप सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • क्रिटिकल मिनरल मिशन — IIT बॉम्बे, IIT हैदराबाद, CSIR-IMMT भुवनेश्वर जैसी संस्थानों में Centres of Excellence (CoEs) की स्थापना।
  • सत्यम्भा पोर्टल — विज्ञान और तकनीक आधारित अनुसंधान को गति देने के लिए शुरू किया गया डिजिटल मंच।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • नियोडिमियम, इलेक्ट्रिक मोटर्स और विंड टरबाइनों में उपयोग होने वाला एक प्रमुख REE है।
  • CSIR-NGRI ने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में महत्वपूर्ण LREE संसाधन खोजे हैं।
  • Indian Rare Earths Limited (IREL) भोपाल में रेयर अर्थ मेटल और टाइटेनियम थीम पार्क विकसित कर रहा है।
  • एनपीटीईएल और अटल टिंकरिंग लैब्स जैसी पहलें स्कूली छात्रों से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक इन क्षेत्रों में कौशल विकास पर काम कर रही हैं।

स्टार्टअप और अनुसंधान का योगदान

भारत में कई संस्थान जैसे JNARDDC नागपुर, NML जमशेदपुर, IMMT भुवनेश्वर, और NIST तिरुवनंतपुरम मिलकर नए सतत खनन और जैव-लीचिंग तकनीकों का विकास कर रहे हैं। इनसे न केवल खनिज निष्कर्षण को पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल बनाया जा रहा है, बल्कि ई-कचरे से यूरोपियम, नायोबियम और टैंटलम जैसे मूल्यवान तत्वों की पुनर्प्राप्ति भी संभव हो रही है।

तकनीक और स्किलिंग: खनन का भविष्य

  • AI, मशीन लर्निंग, डिजिटल ट्विन्स, AR/VR, और मेटावर्स जैसी तकनीकें अब खनन में प्रशिक्षण और परिचालन दक्षता बढ़ाने में उपयोग हो रही हैं।
  • छात्र MATLAB, Simulink, Rockscience, AnyLogic जैसे उपकरणों का उपयोग कर खनन प्रक्रिया का सटीक सिमुलेशन कर रहे हैं।
  • IREL तमिलनाडु जैसे संस्थान प्रशिक्षुओं को इंडस्ट्री स्किल्स सिखा रहे हैं, जबकि National Skill Development Corporation (NSDC) ने माइनिंग स्किल काउंसिल स्थापित की है।

आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा

भारत की यह रणनीति Aatmanirbhar Bharat और Viksit@2047 जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों से जुड़ी हुई है। भारत अब न केवल खनन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, बल्कि वह एक वैश्विक “3M हब” — Mining, Minerals & Materials — बनने की ओर अग्रसर है।
आज जब सेमीकंडक्टर निर्माण से लेकर क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी, एयरोस्पेस, और रक्षा नवाचार तक हर क्षेत्र REEs पर निर्भर है, तब भारत की यह व्यापक योजना उसे एक वैश्विक खनिज शक्ति में बदलने की मजबूत नींव रख रही है।

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