कागजनगर वन प्रभाग में न्यूज़ीलैंड की दुर्लभ ‘ब्लू पिंकगिल’ मशरूम की खोज

कागजनगर वन प्रभाग में न्यूज़ीलैंड की दुर्लभ ‘ब्लू पिंकगिल’ मशरूम की खोज

तेलंगाना के कोमराम भीम आसिफाबाद जिले के कागजनगर वन प्रभाग में इस वर्ष मानसून के दौरान दुर्लभ और रंग-बिरंगे कवकों (फंगी) की बाढ़ देखी गई है। इनमें सबसे आकर्षक खोज है ‘ब्लू पिंकगिल’ मशरूम (Entoloma hochstetteri), जो मूल रूप से न्यूज़ीलैंड में पाई जाती है और वहां के 50 डॉलर के नोट पर भी अंकित है।

ब्लू पिंकगिल मशरूम की विशेषताएं

‘ब्लू पिंकगिल’ को ‘स्काई-ब्लू मशरूम’ भी कहा जाता है। इसका चटक नीला रंग दुर्लभ अजुलेन पिगमेंट्स से आता है।

  • आकार में अपेक्षाकृत छोटा, संपूर्ण नीले रंग का होता है, जबकि गिल्स (कवक की पत्तीनुमा संरचना) गुलाबी से बैंगनी रंग की होती हैं।
  • टोपी (कैप) सपाट या फ़नल आकार की हो सकती है।
  • बीजाणुओं के कारण गिल्स में हल्की लालिमा आ जाती है।
  • स्पोर प्रिंट गुलाबी से सामन (salmon) रंग का होता है, जो पहचान में मदद करता है।

आवास और वृद्धि

यह मशरूम न्यूज़ीलैंड के ब्रॉडलीफ वनों में पत्तियों की परत के बीच जमीन पर उगता है। कागजनगर और कडंबा रिजर्व फ़ॉरेस्ट में इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि यहां का मानसूनी वातावरण — अत्यधिक वर्षा और नम मिट्टी — इसके विकास के लिए आदर्श है।

अन्य दुर्लभ कवक की खोज

इसके साथ ही, उस्मानिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कवाल टाइगर रिज़र्व में शटल-कॉक मशरूम (Clathrus delicatus) का भी पहला रिकॉर्ड दर्ज किया है। यह प्रजाति अब तक केवल वेस्टर्न घाट और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में पाई जाती थी। इसका पूर्वी घाट में मिलना यहां की पारिस्थितिक विशिष्टता को रेखांकित करता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ब्लू पिंकगिल (Entoloma hochstetteri) न्यूज़ीलैंड और भारत के कुछ हिस्सों में पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजाति है।
  • इसका नीला रंग अजुलेन पिगमेंट्स के कारण होता है, जो फूलों और कुछ समुद्री जीवों में भी पाया जाता है।
  • कवाल टाइगर रिज़र्व, तेलंगाना का एक प्रमुख संरक्षित क्षेत्र है, जो यूनेस्को की जैवमंडल रिज़र्व सूची में शामिल होने की संभावना रखता है।
  • विश्वभर में मशरूम प्रजातियों की संख्या का अनुमान 2.2 से 3.8 मिलियन के बीच है, लेकिन केवल लगभग 1,20,000 प्रजातियां ही वैज्ञानिक रूप से वर्णित हैं।

कागजनगर में हुई यह खोज न केवल तेलंगाना के वनों की माइकोलॉजिकल (कवकीय) विविधता को उजागर करती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि भारत के जंगल अभी भी कई वैज्ञानिक रहस्यों से भरे हुए हैं।

Originally written on August 12, 2025 and last modified on August 12, 2025.

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