ऊर्जा एशिया 2025 सम्मेलन: एशिया का ऊर्जा विरोधाभास और सतत समाधान की राह

16-18 जून 2025 को कुआलालंपुर में आयोजित एनर्जी एशिया 2025 सम्मेलन ने एशिया की ऊर्जा चुनौतियों और अवसरों पर वैश्विक ध्यान केंद्रित किया। मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम ने उद्घाटन सत्र में “एशियाई ऊर्जा विरोधाभास” की ओर इशारा करते हुए कहा कि अपार नवीकरणीय संसाधनों के बावजूद एशिया आज भी अपनी 80% ऊर्जा जरूरतों के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर है।
एशिया की ऊर्जा चुनौती
- एशिया के पास जलविद्युत, सौर, पवन और भू-तापीय ऊर्जा की व्यापक संभावनाएँ हैं।
- इसके बावजूद 350 मिलियन लोगों को सीमित और 150 मिलियन को पूर्ण रूप से बिजली से वंचित रहना पड़ता है।
- 2050 तक एशिया की ऊर्जा मांग वैश्विक खपत का आधा हो जाएगी, जिसमें एआई संचालित औद्योगिकीकरण और डेटा सेंटरों की माँग मुख्य भूमिका निभाएगी।
समाधान की दिशा में चर्चा
- सम्मेलन में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS), हाइड्रोजन, डिजिटल इनोवेशन और स्मार्ट ग्रिड जैसे तकनीकी समाधानों पर चर्चा हुई।
- अनवर इब्राहीम ने चेताया कि तेजी से परिवर्तन, यदि असंतुलित हो, तो सामाजिक असमानता को बढ़ा सकता है।
- उन्होंने संतुलित रणनीति, निवेश-सक्षम वित्तीय ढाँचे, और ग्रिड आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।
आर्थिक निवेश की जरूरत
- 2050 तक एशिया को $88.7 ट्रिलियन की ऊर्जा निवेश की आवश्यकता होगी।
- ASEAN क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति श्रृंखला और ग्रिड अवसंरचना में $25-50 ट्रिलियन निवेश की आवश्यकता है।
- हालांकि कोयले पर आधारित ऊर्जा सस्ती और विश्वसनीय बनी हुई है, विशेषज्ञों ने इसे सीमित करने और प्राकृतिक गैस और एलएनजी को संक्रमण ईंधन के रूप में उपयोग करने की वकालत की।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- एनर्जी एशिया सम्मेलन का आयोजन PETRONAS (मलेशिया की तेल और गैस कंपनी) के सहयोग से हुआ।
- 2025 में डेटा सेंटरों की बिजली खपत 945 टेरावाट-घंटा पहुँचने की संभावना है, जो वैश्विक वृद्धि का 20% होगी।
- चीन, अपनी स्पष्ट नीति और निजी प्रतिस्पर्धा के सहारे दुनिया का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा निवेशक बन चुका है।
प्रमुख निष्कर्ष
- ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता के बीच संतुलन बनाना आज एशिया की सबसे बड़ी चुनौती है।
- कोयले से गैस की ओर संक्रमण को सबसे व्यावहारिक समाधान माना गया है, लेकिन इसके लिए वित्तीय प्रतिबद्धता और नीति समर्थन आवश्यक है।
- नवीन परमाणु प्रौद्योगिकियों जैसे उन्नत रिएक्टरों में एशियाई देशों की बढ़ती रुचि उल्लेखनीय है, जिन्हें दीर्घकालीन डीकार्बोनाइजेशन रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
- विशेषज्ञों ने ऊर्जा अवसंरचना के पुनर्कल्पना की आवश्यकता पर बल दिया, न कि केवल पुरानी संपत्तियों को बदलने पर।
“एशिया के नेट-ज़ीरो लक्ष्यों की सफलता के बिना वैश्विक नेट-ज़ीरो की कल्पना अधूरी है” — यह सम्मेलन का मुख्य संदेश रहा। वैश्विक सहयोग, समावेशी वित्त और व्यवहारिक तकनीकी समाधानों के माध्यम से ही एशिया इस ऊर्जा विरोधाभास से बाहर निकल सकता है।