अंतरिक्ष में जीवन के रहस्य खोलने वाला प्रयोग: ‘वॉयेजर टार्डिग्रेड्स’ मिशन

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला द्वारा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर किए जाने वाले वैज्ञानिक प्रयोगों में एक विशेष प्रयोग शामिल है — ‘वॉयेजर टार्डिग्रेड्स’। इस प्रयोग का उद्देश्य इन अद्वितीय सूक्ष्मजीवों की अंतरिक्ष में पुनर्जीवन, जीवित रहने और प्रजनन की क्षमता की जांच करना है। यह प्रयोग केवल अंतरिक्ष जैवविज्ञान की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानव भविष्य के दीर्घकालिक अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

टार्डिग्रेड्स: सूक्ष्म लेकिन अजेय जीवन रूप

टार्डिग्रेड्स, जिन्हें आम बोलचाल में “वाटर बियर” या “मॉस पिगलेट्स” कहा जाता है, लगभग 600 मिलियन वर्षों से पृथ्वी पर मौजूद हैं — डायनासोरों के जन्म से भी 400 मिलियन वर्ष पहले। ये छोटे-से जीव मात्र 0.5 मिमी लंबे होते हैं, जिनके चार जोड़े पैर और हर पैर में 4-6 पंजे होते हैं। इनकी भोजन प्रणाली उन्हें पौधों की कोशिकाओं, शैवाल और सूक्ष्म अकशेरुकी जीवों से पोषण प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
इनका निवास स्थान अत्यंत विविध होता है — हिमालय की ऊँचाइयों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक, परंतु इनका मुख्य निवास स्थान काई और लाइकेन की पतली जल-परत होती है।

टार्डिग्रेड्स का वैज्ञानिक महत्व

इन जीवों में विलक्षण जीवन-रक्षण क्षमता पाई जाती है। ये -272.95°C से 150°C तक के तापमान सह सकते हैं, अंतरिक्ष की पराबैंगनी किरणों और अत्यधिक दाब (40,000 किलोपास्कल) का सामना कर सकते हैं, और दशकों तक फ्रीजर में जीवित रह सकते हैं।
इनकी इस क्षमता का कारण है “क्रिप्टोबायोसिस” — एक स्थिति जिसमें जीव अपने चयापचय को लगभग पूर्ण विराम पर ले आता है। इसमें जल की मात्रा 95% तक घट जाती है, और ये ‘टन’ नामक संकुचित रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जिसमें वे कठोरतम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
इसके अलावा, टार्डिग्रेड्स के कोशिकीय तंत्र में पाए जाने वाले विशेष प्रोटीन जैसे CAHS (Cytoplasmic-abundant Heat Soluble) भी इन्हें जीवित रखने में सहायक होते हैं। ये प्रोटीन कोशिकाओं में जेल जैसा ढांचा बनाते हैं, जो उन्हें टूट-फूट से बचाता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • टार्डिग्रेड्स पृथ्वी पर ज्ञात सबसे पुराने और सहनशील जीवन रूपों में से एक हैं।
  • ये जीव 2007 में यूरोपीय स्पेस एजेंसी के फोटॉन-M3 मिशन में पहली बार अंतरिक्ष में भेजे गए थे।
  • यह जीव क्रिप्टोबायोसिस और एनहाइड्रोबायोसिस जैसी स्थितियों में अपने जीवन को निलंबित कर सकते हैं।
  • टार्डिग्रेड्स अंतरिक्ष के निर्वात, विकिरण और तापमान के प्रभाव से सुरक्षित रह सकते हैं।

वॉयेजर टार्डिग्रेड्स प्रयोग का उद्देश्य

ISS पर भेजे गए टार्डिग्रेड्स को ‘टन’ अवस्था में रखा जाएगा। फिर उन्हें पुनर्जीवित कर यह देखा जाएगा कि अंतरिक्ष की विकिरण और गुरुत्वहीनता उनके DNA, प्रजनन क्षमता और अन्य जैविक प्रक्रियाओं पर क्या प्रभाव डालती हैं। वैज्ञानिक उन विशिष्ट जीनों की पहचान करना चाहते हैं जो इन जीवों को अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम बनाते हैं।
इस ज्ञान का उपयोग अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष विकिरण से सुरक्षा देने, मांसपेशियों और हड्डियों की गिरावट को रोकने, और जैविक सामग्री को लंबे समय तक संरक्षित करने के लिए किया जा सकता है।

भविष्य की राह

टार्डिग्रेड्स अंतरिक्ष में जीवित रहने वाले पहले ज्ञात जीव हैं, जो न केवल अंतरिक्ष के कठोर वातावरण को सहते हैं बल्कि वहां पुनर्जीवित और प्रजनन भी कर सकते हैं। शुभांशु शुक्ला द्वारा किए जाने वाले इस प्रयोग से अंतरिक्ष में दीर्घकालिक जीवन की संभावना के नए द्वार खुल सकते हैं — जिससे न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान को गति मिलेगी, बल्कि पृथ्वी पर भी चिकित्सा, कृषि और जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई राहें प्रशस्त होंगी।

1 Comment

  1. Ravi Shankar

    June 11, 2025 at 6:23 pm

    This information is very useful and important for human genetics development
    So I agree for this information..

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