WISPIT 2b: ग्रह निर्माण की प्रक्रिया का पहली बार प्रत्यक्ष साक्ष्य

खगोल विज्ञान की दुनिया में एक ऐतिहासिक खोज सामने आई है — वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी नवग्रह को प्रत्यक्ष रूप से उसकी जन्मस्थली, यानी एक प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क की खाई में, बनते हुए देखा है। यह नवग्रह है WISPIT 2b, जो एक विशाल गैस ग्रह है और यह खोज हमारे सौरमंडल के निर्माण जैसे रहस्यों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
क्या होती है प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क?
प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क वे गैसीय और धूलभरे छल्ले होते हैं जो नवजात तारों के चारों ओर मौजूद रहते हैं। ये ही वह मूल पदार्थ हैं जिनसे ग्रहों का निर्माण होता है। इन डिस्क में दिखने वाली ‘खाइयाँ’ या ‘गैप्स’ लंबे समय से वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य रही हैं। अब तक माना जाता था कि इन खाइयों का निर्माण ग्रहों द्वारा किया जाता है, लेकिन कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं था।
अब, WISPIT 2b की प्रत्यक्ष छवि इस परिकल्पना को सिद्ध करती है।
WISPIT 2b: एक नवगठित गैस दानव ग्रह
- नाम: WISPIT 2b
- प्रकार: गैस दानव (Gas Giant)
- आकार: बृहस्पति से लगभग 5 गुना अधिक
- आयु: मात्र 50 लाख वर्ष — पृथ्वी से लगभग 1,000 गुना छोटा
- तारा: WISPIT 2 (युवा तारा)
- दूरी: पृथ्वी से लगभग 437 प्रकाश-वर्ष
यह ग्रह अपने तारे की डिस्क में स्थित एक खाई के भीतर सक्रिय रूप से गैस और धूल एकत्र कर रहा है, जिससे यह पुष्ट होता है कि वह निर्माण प्रक्रिया में है।
खोज कैसे हुई?
इस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग किया:
- चिली स्थित वेरि लार्ज टेलीस्कोप (VLT) से पहले WISPIT 2 सिस्टम की पहचान हुई।
- इसके बाद मैगेलन क्ले टेलीस्कोप पर MagAO-X यंत्र द्वारा Hydrogen-alpha प्रकाश में ग्रह की प्रत्यक्ष छवि ली गई।
- यह प्रकाश उस समय उत्सर्जित होता है जब हाइड्रोजन गैस किसी ग्रह पर गिरती है — जो निर्माण की स्पष्ट निशानी है।
- साथ ही, लार्ज बायनॉक्युलर टेलीस्कोप से अवरक्त चित्रण द्वारा अतिरिक्त जानकारी प्राप्त की गई।
इस प्रणाली में एक और संभावित ग्रह की मौजूदगी भी देखी गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि WISPIT 2 में बहुग्रही प्रणाली विकसित हो रही है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Hydrogen-alpha प्रकाश ग्रह निर्माण की प्रक्रिया को उजागर करने वाला विशेष संकेत है।
- WISPIT प्रोजेक्ट का पूरा नाम है: Wide Separation Planets in Time।
- यह खोज University of Arizona के खगोलशास्त्री लेयर्ड क्लोज़ और Leiden Observatory की छात्रा रिचेल वान कैपलेवीन के नेतृत्व में हुई।
- यह शोध 26 अगस्त 2025 को Astrophysical Journal Letters में प्रकाशित हुआ।