UNESCO की नई पहल: संकटग्रस्त सांस्कृतिक विरासतों की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम
संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक संस्था UNESCO ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए कई परंपरागत कलाओं और शिल्पों को अपनी “संकटग्रस्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की सूची” में शामिल किया है। इस कदम का उद्देश्य उन सांस्कृतिक प्रथाओं को संरक्षित करना है जो आधुनिकता, पलायन और सामाजिक-आर्थिक बदलावों के चलते धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं। यह पहल सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने की दिशा में एक वैश्विक प्रयास का हिस्सा है।
UNESCO द्वारा इस सूची में शामिल की गई कुछ महत्वपूर्ण परंपराएं हैं:
- बोरींदो (पाकिस्तान): यह एक प्राचीन पारंपरिक वाद्य यंत्र है, जो पाकिस्तान की मौखिक और संगीत विरासत का प्रतीक माना जाता है।
- म्वाजिंडिका नृत्य (केन्या): यह एक आध्यात्मिक नृत्य है जो सामुदायिक अनुष्ठानों और परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।
- डोंग हो वुडब्लॉक प्रिंटिंग (वियतनाम): यह पारंपरिक छपाई कला अपनी विशिष्ट शैली और सांस्कृतिक कथा-वाचन के लिए प्रसिद्ध है।
इन परंपराओं को सूची में शामिल करने का तात्पर्य केवल कलात्मक मान्यता नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान को भी वैश्विक मंच पर मान्यता देना है।
UNESCO का यह विशेष सत्र भारत में लाल किले पर आयोजित हुआ, जो कि पहली बार भारत में इस तरह की विश्व सांस्कृतिक बैठक का आयोजन था। इस ऐतिहासिक स्थल ने सांस्कृतिक संरक्षण के प्रतीक के रूप में एक मजबूत संदेश दिया और भारत की सांस्कृतिक नेतृत्व की भूमिका को भी रेखांकित किया।
भारत की मेज़बानी ने यह भी दर्शाया कि देश न केवल अपनी विरासत की रक्षा कर रहा है, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक उत्तराधिकार की रक्षा में भी योगदान दे रहा है।
इस वर्ष UNESCO को लगभग 67 नामांकन 80 देशों से प्राप्त हुए हैं। इन नामांकनों में संगीत, नृत्य, शिल्प, अनुष्ठान और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियाँ शामिल हैं। चयन प्रक्रिया में यह देखा जाता है कि कौन सी परंपराएं तत्काल संरक्षण की आवश्यकता में हैं और उनमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी से संरक्षण की व्यवहार्यता कितनी है।
UNESCO की यह पहल वैश्विक सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित रखने की दिशा में एक मजबूत संकेत है। जब दुनिया आधुनिकता के नए दौर में प्रवेश कर रही है, ऐसे में यह ज़रूरी है कि हमारी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरें भी जीवित रहें। समुदाय-आधारित संरक्षण, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और जागरूकता अभियानों के माध्यम से इन परंपराओं को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुंचाया जा सकता है।