ISRO 2 नवंबर को करेगा CMS-03 उपग्रह का प्रक्षेपण, भारत के सामरिक संचार नेटवर्क को मिलेगी नई मजबूती
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2 नवंबर 2025 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एक महत्वपूर्ण सैन्य संचार उपग्रह — CMS-03 (जिसे GSAT-7R भी कहा जाता है) — को प्रक्षेपित करने जा रहा है। यह उपग्रह भारत के अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रहों में शामिल होगा, जिसका प्रक्षेपण लांच व्हीकल मार्क-3 (LVM3) के ज़रिए भू-स्थानांतरण कक्षा (GTO) में किया जाएगा।
CMS-03 लगभग 4400 किलोग्राम वजनी है और यह GTO में प्रक्षेपित होने वाला भारत का सबसे भारी संचार उपग्रह होगा। यह उपग्रह भारतीय भूभाग सहित व्यापक समुद्री क्षेत्रों में मल्टी-बैंड संचार सेवाएं प्रदान करेगा, जिससे नौसेना और अन्य रक्षा बलों की संचार क्षमताओं में उल्लेखनीय सुधार होगा।
दो वर्षों के बाद LVM3 की वापसी
LVM3 रॉकेट का यह प्रक्षेपण दो वर्षों बाद हो रहा है। पिछली बार जुलाई 2023 में इसे चंद्रयान-3 मिशन के लिए प्रयोग किया गया था, जिसमें भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बना था। इस बार CMS-03 के साथ इसका पुनः उपयोग भारतीय सामरिक क्षमताओं के विस्तार के लिए किया जा रहा है।
ISRO ने 26 अक्टूबर को जानकारी दी कि लॉन्च व्हीकल को पूरी तरह संयोजित कर उपग्रह से जोड़ा जा चुका है और यह लॉन्च पैड पर पहुंच चुका है। अब प्रक्षेपण पूर्व प्रक्रियाएँ अंतिम चरण में हैं।
CMS-03 की भूमिका और सामरिक महत्व
CMS-03 उपग्रह विशेष रूप से भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है। यह भारतीय नौसेना के लिए समुद्र में सुरक्षित, निर्बाध और तेज़ संचार सुविधा उपलब्ध कराएगा। साथ ही यह तटीय निगरानी, समुद्री संचालन और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित नेटवर्किंग को अधिक प्रभावशाली बनाएगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- CMS-03 (GSAT-7R) एक मल्टी-बैंड सैन्य संचार उपग्रह है जिसका वजन 4400 किलोग्राम है।
- यह उपग्रह भू-स्थानांतरण कक्षा (GTO) में स्थापित किया जाएगा।
- LVM3 रॉकेट ISRO का सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान है, जिसे पहले GSLV Mk-III के नाम से जाना जाता था।
- चंद्रयान-3 मिशन, जो जुलाई 2023 में इसी रॉकेट से प्रक्षेपित हुआ था, ने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना दिया।
CMS-03 का प्रक्षेपण न केवल भारत की अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ती तकनीकी क्षमता का प्रमाण है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संचार बुनियादी ढांचे को भी नई ऊंचाइयाँ देगा। यह उपग्रह देश की समुद्री सीमाओं और सामरिक स्थलों की निगरानी एवं नियंत्रण में क्रांतिकारी भूमिका निभाएगा।