ISRO का सबसे भारी रॉकेट LMLV: चंद्र मानव मिशन की तैयारी में भारत

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट — लूनर मॉड्यूल लॉन्च व्हीकल (LMLV) — के विकास की योजना साझा की है। ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन ने 23 अगस्त 2025 को बताया कि यह रॉकेट चंद्र अभियानों, विशेष रूप से 2040 तक प्रस्तावित भारत के पहले चंद्र मानव मिशन, के लिए उपयोग किया जाएगा। इस रॉकेट की क्षमता 27 टन भार को चंद्रमा तक और 80 टन को निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) तक ले जाने की होगी।
ISRO के लॉन्च वाहनों का ऐतिहासिक विकास
भारत में रॉकेट विज्ञान की शुरुआत ISRO से पहले ही हो चुकी थी। 1963 में थुंबा (केरल) से पहला ‘साउंडिंग रॉकेट’ Nike Apache लॉन्च किया गया था — जिसे बैल गाड़ी में ले जाया गया था। लेकिन यह केवल वायुमंडलीय प्रयोगों के लिए था।
- SLV-3 (1980): भारत का पहला उपग्रह प्रक्षेपण यान, जिसकी अगुवाई डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने की थी। पहला प्रयास विफल रहा, पर 1980 में सफलता मिली और रोहिणी-1 उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया।
- ASLV (1992): SLV-3 का उन्नत संस्करण, जिसकी पेलोड क्षमता 100 किलोग्राम से अधिक थी। हालांकि यह बहुत सफल नहीं रहा।
- PSLV (1994 से): भारत का सबसे भरोसेमंद और बहुपयोगी रॉकेट। चंद्रयान-1, मंगलयान, और कई विदेशी उपग्रहों को इसी के माध्यम से लॉन्च किया गया। इसकी तीन प्रमुख संरचनाएँ हैं — PSLV-CA, PSLV-XL, और सामान्य PSLV।
- GSLV और LVM-3 (2014 से): क्रायोजेनिक इंजन युक्त भारी रॉकेट, जो 4,000 किलोग्राम तक के पेलोड को भू-स्थिर कक्षा में ले जा सकता है। GSLV Mk-III (अब LVM-3) ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 को अंतरिक्ष में पहुंचाया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ISRO की स्थापना 1969 में हुई थी, और यह भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन है।
- PSLV के जरिए भारत 2008 में चंद्रमा और 2013 में मंगल तक पहुँच गया।
- क्रायोजेनिक इंजन का विकास भारत ने स्वदेशी रूप से किया, क्योंकि अमेरिका ने 1990 के दशक में तकनीक देने से मना कर दिया था।
- LMLV की क्षमता 80 टन तक LEO में और 27 टन तक चंद्रमा तक पेलोड ले जाने की है — यह ISRO का अब तक का सबसे भारी रॉकेट होगा।
चंद्र मानव मिशन की तैयारी में एक बड़ा कदम
LMLV का विकास भारत के लिए न केवल तकनीकी उन्नति है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष मिशनों में भारत की आत्मनिर्भरता और नेतृत्व क्षमता का भी प्रतीक होगा। यह रॉकेट ISRO को भविष्य में न केवल चंद्रमा पर मानवीय उपस्थिति स्थापित करने, बल्कि संभावित रूप से मंगल और अन्य गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए भी तैयार करेगा।
निष्कर्ष
LMLV का विकास ISRO के निरंतर नवाचार, आत्मनिर्भरता और वैश्विक अंतरिक्ष दौड़ में प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता को दर्शाता है। SLV-3 से लेकर LVM-3 और अब LMLV तक की यात्रा भारत की वैज्ञानिक शक्ति और प्रतिबद्धता का परिचायक है। 2035 तक जब यह रॉकेट तैयार होगा, तब भारत चंद्रमा पर मानव भेजने की दिशा में एक ठोस कदम और आगे बढ़ चुका होगा।