INSV कौंडिन्य: भारत की प्राचीन समुद्री परंपरा की पुनर्स्थापना की ऐतिहासिक यात्रा
भारत अपनी प्राचीन समुद्री धरोहर को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठा रहा है। INSV कौंडिन्य, एक 5वीं शताब्दी के व्यापारी जहाज की हाथ से सिली हुई प्रतिकृति, जल्द ही अरब सागर पार कर मस्कट की ऐतिहासिक यात्रा पर रवाना होगी। यह अद्वितीय लकड़ी का जहाज करवार नौसैनिक अड्डे से चल चुका है और इस समय गुजरात के पोरबंदर की ओर आठ दिन की यात्रा पर है, जहाँ से इसकी अंतरराष्ट्रीय समुद्री यात्रा शुरू होगी।
INSV कौंडिन्य को पारंपरिक जहाज निर्माण तकनीकों से बनाया गया है, जो भारत के पश्चिमी तट पर प्राचीन काल में प्रचलित थीं। गोवा के दिवर द्वीप पर निर्मित यह 20 मीटर लंबा जहाज नारियल की रस्सी से सिलकर और मछली के तेल व कुंदूरूस (प्राकृतिक पेड़ की राल) से सील किया गया है। इस जहाज में किसी भी आधुनिक संरचनात्मक परिवर्तन का प्रयोग नहीं किया गया है, जिससे इसकी प्रामाणिकता और ऐतिहासिकता बनी रहती है।
इसका निर्माण और संचालन भारत की समुद्री विरासत को यथासंभव उसी रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है जैसा कि प्राचीन ग्रंथों और चित्रों में वर्णित है।
पोरबंदर से मस्कट तक की यात्रा उसी प्राचीन समुद्री व्यापार मार्ग का अनुसरण करेगी, जिससे भारत पश्चिम एशिया को मसाले, हाथी दांत, वस्त्र और अन्य वस्तुएं निर्यात करता था। यह अभियान भारतीय नौसेना के 16 सदस्यीय दल द्वारा संचालित किया जाएगा, जिसे विशेष प्रशिक्षण दिया गया है।
इसमें मानसून के बाद की समुद्री परीक्षण, पारंपरिक शिल्पकला, मस्तूलों की व्यवस्था, और लकड़ी के निर्माण जैसे कौशल शामिल हैं, जिन्हें पारंपरिक कारीगरों द्वारा सिखाया गया।
INSV कौंडिन्य के निर्माण की प्रेरणा अजंता गुफाओं में चित्रित एक stitched समुद्री जहाज से मिली। इस परियोजना को भारतीय नौसेना और संस्कृति मंत्रालय का सहयोग प्राप्त हुआ, जबकि निर्माण कार्य गोवा स्थित पारंपरिक जहाज निर्माण संस्था Hodi Innovations द्वारा किया गया।
यह पहल इतिहासकारों, कारीगरों, नीति निर्माताओं और नौसैनिक विशेषज्ञों के बीच एक दुर्लभ सहयोग का उदाहरण है, जिसका उद्देश्य भारत की समुद्री विरासत को जीवंत रूप में प्रस्तुत करना है।
मस्कट तक की यह यात्रा लगभग 15 दिनों में पूरी होने की संभावना है, जो मौसम पर निर्भर होगी। यह यात्रा केवल एक समुद्री साहसिक कार्य नहीं है, बल्कि भारत और खाड़ी क्षेत्र के बीच प्राचीन समुद्री संबंधों की पुनर्पुष्टि का भी प्रतीक है।
INSV कौंडिन्य के माध्यम से भारत एक बार फिर यह संदेश दे रहा है कि उसकी सांस्कृतिक और व्यापारिक विरासत केवल इतिहास में नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की वैश्विक साझेदारियों में भी जीवंत है। यह आधुनिक काल की हेरिटेज-आधारित समुद्री कूटनीति का जीवंत उदाहरण बन रहा है।