ILO रिपोर्ट में खुलासा: भारत दुनिया के सबसे अधिक काम करने वाले देशों में शामिल
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी 2024 की नवीनतम रिपोर्ट में भारत को विश्व के सबसे अधिक काम करने वाले देशों में शुमार किया गया है। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय कर्मचारी प्रति सप्ताह औसतन 45.7 घंटे कार्य करते हैं, जो कि वैश्विक औसत से काफी अधिक है। यह स्थिति मानसिक थकावट, व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव और कार्य-जीवन संतुलन के बिगड़ने जैसे गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य समस्याओं की ओर संकेत करती है।
ILO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है जहां औसत साप्ताहिक कार्य घंटे सबसे अधिक हैं। भारत की तुलना बांग्लादेश, मंगोलिया और ईरान जैसे श्रम-केंद्रित अर्थव्यवस्थाओं से की गई है। जबकि विकसित देशों में मजबूत श्रम सुरक्षा और उत्पादकता आधारित कार्य संस्कृति के चलते औसत कार्य घंटों में लगातार गिरावट आई है, वहीं भारत में यह संख्या उच्च बनी हुई है।
भारत में अधिक कार्य घंटे के पीछे कई संरचनात्मक और सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं:
- बड़ा असंगठित क्षेत्र, जहाँ श्रम कानूनों का पालन सीमित होता है।
- निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता और नौकरी की असुरक्षा, जो कर्मचारियों को लंबे समय तक कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।
- डिजिटल युग में 24×7 कनेक्टिविटी, जिससे कार्य समय की सीमाएँ धुंधली हो गई हैं।
- लंबा कार्य समय अब समर्पण और उत्पादकता का पैमाना बन चुका है, विशेष रूप से श्वेतपोश उद्योगों में।
ILO के इन आंकड़ों के बाद “राइट टू डिसकनेक्ट बिल 2025” पर फिर से बहस तेज हो गई है। यह विधेयक कर्मचारियों को कार्य समय के बाद काम से जुड़ी संचार से सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
समर्थकों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत जीवन की सुरक्षा के लिए यह कदम आवश्यक है। जबकि आलोचक मानते हैं कि वैश्विक स्तर पर कार्य करने वाले उद्योगों में यह लचीलापन कम कर सकता है।
यह बहस दर्शाती है कि भारत का युवा कार्यबल अब कार्य-जीवन संतुलन को प्राथमिकता देने की ओर बढ़ रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लंबे कार्य घंटे हमेशा उच्च उत्पादकता में परिवर्तित नहीं होते। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि अत्यधिक कार्य:
- कुशलता में कमी,
- स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में वृद्धि,
- और लंबी अवधि में उत्पादन में गिरावट का कारण बन सकता है।
भारत यदि वैश्विक आर्थिक केंद्र के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहता है, तो उसे प्रतिस्पर्धा और कर्मचारियों की भलाई के बीच संतुलन बनाना होगा। ILO की यह रिपोर्ट यह स्पष्ट संकेत देती है कि अब समय आ गया है जब कार्य-संस्कृति को सहनशीलता आधारित नहीं, बल्कि स्थायी उत्पादकता आधारित बनाया जाए।