72 साल बाद कर्नाटक और ओडिशा में बांस झींगा की पुनर्खोज

72 साल बाद कर्नाटक और ओडिशा में बांस झींगा की पुनर्खोज

भारत के समुद्री और मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में, वैज्ञानिकों ने 72 वर्षों बाद बांस झींगा (Atyopsis spinipes) की भारतीय आबादी को कर्नाटक और ओडिशा में फिर से खोजा है। यह खोज सथ्यभामा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज स्टडीज के शोधकर्ताओं द्वारा की गई, जिन्होंने नदी और तटीय क्षेत्रों में व्यापक सर्वेक्षण किया।

पुनर्खोज और सर्वेक्षण प्रयास

इस खोज की शुरुआत 2022 में हुई, जब ओडिशा के एक एक्वेरियम प्रेमी ने एक परिपक्व बांस झींगा देखा। यद्यपि वह नमूना संरक्षित नहीं रह सका, लेकिन उसने वैज्ञानिकों को संभावित आवास क्षेत्रों की दिशा दिखाई। इसके बाद उडुपी, करवार और मंगलुरु क्षेत्रों में विस्तृत सर्वेक्षण किए गए, जहाँ खारे पानी वाले क्षेत्र, रेतीले तल, पत्तियों का जमाव और मैंग्रोव वन पाए जाते हैं जो इस प्रजाति के “एम्फिड्रोमस जीवनचक्र” के लिए उपयुक्त हैं।

ऐतिहासिक गलत पहचान का सुधार

लगभग सात दशक पहले दर्ज किए गए रिकॉर्ड्स में भारतीय नमूनों को Atyopsis mollucensis के रूप में गलत पहचान दी गई थी। अब आनुवंशिक और संरचनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि वे नमूने वास्तव में Atyopsis spinipes ही थे। नई खोज में अंडमान द्वीप से प्राप्त एक संग्रहालय नमूना भी शामिल किया गया, जिसने इस निष्कर्ष की पुष्टि की। यह प्रजाति तापमान और लवणता के उतार-चढ़ाव को सहने में सक्षम है, जिससे इसका दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक वितरण संभव हुआ है।

पारिस्थितिकी, खतरे और संरक्षण की आवश्यकता

बांस झींगा पानी में तैरते हुए अपने पंखनुमा अंगों से भोजन के कणों को छानकर खाते हैं। यह खोज भारत की मीठे पानी की जैवविविधता की छिपी हुई संपदा को उजागर करती है, जो रेत खनन, निर्माण परियोजनाओं और मानवीय दखल से लगातार खतरे में है। वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया है कि भविष्य में गलत पहचान से बचने और संरक्षण रणनीतियों को मजबूत करने के लिए व्यवस्थित सर्वेक्षण और आनुवंशिक परीक्षण अनिवार्य हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Atyopsis spinipes की पुनर्खोज कर्नाटक और ओडिशा में 72 साल बाद हुई।
  • यह झींगा “एम्फिड्रोमस” प्रजाति का है, जिसकी लार्वा अवस्था खारे पानी में विकसित होती है।
  • पहले दर्ज की गई Atyopsis mollucensis की भारतीय प्रविष्टियाँ अब गलत मानी जा रही हैं।
  • ताजे पानी के आवास रेत खनन, पुल निर्माण और मानवीय गतिविधियों से खतरे में हैं।

एक्वेरियम व्यापार की चुनौती

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि एक्वेरियम उद्योग की मांग इस प्रजाति की जंगली आबादी के लिए खतरा बन सकती है। चूँकि बांस झींगा को कैद में प्रजनन करना कठिन है, इसलिए इनकी प्राकृतिक आबादी पर दबाव बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता, नियमन और आवास संरक्षण ही इस पुनर्खोजी गई प्रजाति और भारत की ताजे पानी की जैवविविधता को सुरक्षित रखने के प्रमुख उपाय हैं।

Originally written on December 2, 2025 and last modified on December 2, 2025.

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