2025 में खनिज संकट और भारत की रणनीति: दुर्लभ खनिजों से आत्मनिर्भरता की ओर

2025 में वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और स्वच्छ ऊर्जा की क्रांति ने एक नई होड़ छेड़ दी है — दुर्लभ और रणनीतिक खनिजों की होड़। जैसे-जैसे ईवी बिक्री 2024 में 1.7 करोड़ और 2025 में 2 करोड़ के आंकड़े को पार कर रही है, लिथियम, कोबाल्ट और रेयर अर्थ जैसे खनिजों की मांग अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है। चीन द्वारा अप्रैल 2025 में रेयर-अर्थ निर्यात पर लगाई गई रोक ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को झकझोर दिया और भारत सहित कई देशों को अपनी खनिज नीति पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित किया।

वैश्विक प्रतिक्रिया और भारत की भूमिका

जुलाई 2025 में आयोजित क्वाड सम्मेलन में लॉन्च किए गए “क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव” ने वैश्विक सहयोग की दिशा में निर्णायक मोड़ दिया। इस पहल के तहत अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने आपूर्ति शृंखलाओं को विविधता प्रदान करने और खनिज संसाधनों को सुरक्षित करने पर सहमति जताई।
भारत ने अफ्रीका में खनन समझौते किए हैं, बैटरी धातुओं के भंडारण की योजना बनाई है और एक समर्पित टास्क फोर्स का गठन किया है। ऑस्ट्रेलिया से लिथियम आपूर्ति के लिए संयुक्त उद्यम शुरू हो चुके हैं, वहीं जापान ने ऑस्ट्रेलियाई रेयर-अर्थ कंपनी लिनास में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है।

भारत की खनिज आत्मनिर्भरता की योजनाएं

वित्त वर्ष 2025 में भारत ने 53,748 मीट्रिक टन रेयर-अर्थ मैग्नेट आयात किए, जिससे उसकी रणनीतिक निर्भरता स्पष्ट होती है। इसी को कम करने के लिए भारत सरकार ने सात-वर्षीय राष्ट्रीय कार्यक्रम की घोषणा की है, जिसमें घरेलू प्रोसेसिंग और मैग्नेट उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा।

  • वेदांता ने जाम्बिया में तांबा-कोबाल्ट खनन के लिए $1.2 बिलियन निवेश का ऐलान किया।
  • टाटा स्टील वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से प्रसंस्करण क्षमताएं बढ़ा रही है।
  • गुजरात मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने ₹3,500 करोड़ का निवेश तय किया है।
  • इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड ने कजाकिस्तान की कंपनी UKTMP JSC के साथ टाइटेनियम स्लैग निर्माण के लिए साझेदारी की है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2025 में ईवी बिक्री का अनुमान 2 करोड़ यूनिट्स से अधिक का है।
  • क्वाड की “क्रिटिकल मिनरल्स इनिशिएटिव” जुलाई 2025 में शुरू की गई।
  • भारत ने वर्ष 2025 में 53,748 मीट्रिक टन रेयर-अर्थ मैग्नेट्स का आयात किया।
  • भारत और अमेरिका के बीच अक्टूबर 2024 में “क्रिटिकल मिनरल्स जॉइंट फ्रेमवर्क” स्थापित हुआ।

नीतिगत सुधारों की आवश्यकता

भारत को अब खनिजों के स्थानीय मूल्यवर्धन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। लिथियम और निकेल जैसे खनिजों के लिए दी जाने वाली खदान रियायतों के साथ-साथ घरेलू प्रसंस्करण संयंत्रों को प्रोत्साहित करना जरूरी है। ब्रिटेन की तरह खनन-सेक्टर में कौशल विकास और अमेरिका की तर्ज पर “गिगाफैक्ट्री” निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
अनुमति प्रक्रिया, जो वर्तमान में 18 साल तक खिंचती है, को राज्य और केंद्र स्तर पर समन्वय करके सरल बनाना होगा। जापान और अमेरिका जैसे देशों के साथ मिलकर बैटरी रीसाइक्लिंग तकनीक पर नवाचार को अपनाना होगा।

रणनीतिक व्यापार और सहयोग

भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ दीर्घकालिक खनिज सहयोग समझौते किए हैं, जिससे घरेलू उद्योग को स्थायित्व और आत्मविश्वास मिलेगा। महिंद्रा, सोना कॉमस्टार और उन्नो मिंडा जैसी कंपनियां अब चाइनीज निर्भरता कम करने के लिए अनुसंधान में निवेश कर रही हैं।
सरकार ने ₹1,345 करोड़ की योजना के तहत घरेलू मैग्नेट उत्पादन और स्क्रैप पुनर्प्राप्ति को भी प्रोत्साहित किया है, जिससे एक सर्कुलर इकोनॉमी विकसित की जा सके।

निष्कर्ष

2025 में खनिज संकट ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की कमजोरियों को उजागर किया है, लेकिन भारत ने इसे अवसर में बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। अब आवश्यकता है इस लचीलापन को संस्थागत रूप देने की — ऐसे दीर्घकालिक सहयोगों, निवेशों और नवाचारों के माध्यम से जो भारत को खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भर और वैश्विक अग्रणी बना सकें। आने वाले वर्षों में यह तय करेगा कि भारत सिर्फ एक उपभोक्ता राष्ट्र रहेगा या खनिज उत्पादन और तकनीकी नवाचार का वैश्विक केंद्र बनेगा।

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