130वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025: मंत्री पद और गिरफ्तारी को लेकर नया विवाद

130वां संविधान संशोधन विधेयक, 2025: मंत्री पद और गिरफ्तारी को लेकर नया विवाद

20 अगस्त को लोकसभा में भारी हंगामे के बीच पेश किया गया संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025, अब संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया है। यह विधेयक मंत्री पद पर आसीन व्यक्तियों की गिरफ्तारी की स्थिति में उनके पद से हटाने का प्रावधान करता है, जिससे राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस छिड़ गई है।

विधेयक के मुख्य प्रावधान

विधेयक अनुच्छेद 75 में संशोधन करता है, जो भारत के प्रधानमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति, कर्तव्यों और पदच्युत होने से जुड़ा है।

  • यदि कोई मंत्री लगातार 30 दिनों तक जेल में रहता है और उस पर ऐसा अपराध आरोपित है जिसकी अधिकतम सजा पाँच साल या उससे अधिक है, तो वह पद से हटा दिया जाएगा।
  • हटाने की सिफारिश मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रपति को दी जाएगी; यदि ऐसा नहीं होता, तो मंत्री 31वें दिन स्वतः पद से हटा माना जाएगा।
  • हालांकि, रिहाई के बाद उसे पुनः मंत्री या मुख्यमंत्री नियुक्त किया जा सकता है।

विधेयक पर विरोध क्यों?

विपक्ष ने इस विधेयक का तीखा विरोध किया है और इसे लोकतंत्र विरोधी करार दिया है:

  • केवल गिरफ्तारी के आधार पर पदच्युत करना “दोष सिद्ध होने तक निर्दोष” की अवधारणा के विपरीत है।
  • विपक्ष को आशंका है कि इसका प्रयोग केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए करेगी, विशेष रूप से सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों के माध्यम से।
  • AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे कार्यपालिका को न्यायपालिका के कार्य देने जैसा बताया।
  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “सुपर-आपातकाल” की शुरुआत कहा है और संघीय ढांचे पर प्रहार बताया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अनुच्छेद 75: यह प्रधानमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति, पद की अवधि और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
  • संविधान संशोधन: संविधान में संशोधन संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत और राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद लागू होता है।
  • संयुक्त संसदीय समिति (JPC): यह समिति किसी विशेष मुद्दे या विधेयक की विस्तृत समीक्षा के लिए बनाई जाती है और इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं।
  • दोषसिद्धि बनाम गिरफ्तारी: भारतीय कानून में दोषसिद्ध होने पर अयोग्यता का प्रावधान है, लेकिन केवल गिरफ्तारी पर सजा देने की अवधारणा नई है।

संयुक्त समिति की भूमिका

यह विधेयक अब 31-सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है, जिसके सदस्य लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति द्वारा नियुक्त किए जाएंगे। समिति को अगली संसद सत्र के पहले दिन तक अपनी रिपोर्ट पेश करनी है।
हालांकि इस समिति की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, लेकिन वे विधेयक के भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं। समिति का दायित्व इस विधेयक की संवैधानिकता, व्यावहारिक प्रभाव और संभावित दुरुपयोग पर रिपोर्ट देना है।
इस विधेयक ने एक बार फिर से यह प्रश्न उठाया है कि भारत में सत्ता, न्याय और स्वतंत्र संस्थाओं के बीच संतुलन कैसे बना रहे। आगामी संसदीय बहसें यह तय करेंगी कि यह विधेयक लोकतंत्र की रक्षा करेगा या उस पर आघात करेगा।

Originally written on August 21, 2025 and last modified on August 21, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *