127 वर्षों बाद वापसी: भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष भारत लौटे

127 वर्षों बाद वापसी: भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष भारत लौटे

भारत की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए, 30 जुलाई 2025 को भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष 127 वर्षों के अंतराल के बाद भारत लौट आए। यह पुनर्प्राप्ति भारत सरकार और गोदरेज इंडस्ट्रीज़ समूह के बीच एक उत्कृष्ट सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से संभव हो सकी।

पिपरहवा अवशेष: ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व

1898 में ब्रिटिश सिविल इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा उत्तर प्रदेश के पिपरहवा में खोजे गए ये अवशेष तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के माने जाते हैं और बुद्ध के नश्वर अवशेषों से जुड़े हैं। इन अवशेषों में हड्डियों के टुकड़े, साबुन के पत्थर और क्रिस्टल के पात्र, बलुआ पत्थर का संदूक, और सोने तथा रत्नों की भेंटें शामिल हैं। ब्राह्मी लिपि में खुदे शिलालेखों से यह पुष्टि होती है कि ये अवशेष शाक्य कुल द्वारा बुद्ध को समर्पित किए गए थे।

वापसी की प्रक्रिया और सरकारी प्रयास

इन पवित्र अवशेषों की एक छोटी संख्या को मई 2025 में हांगकांग के एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी घर में नीलाम करने की योजना बनाई गई थी। भारत सरकार ने 5 मई को Sotheby’s Hong Kong को कानूनी नोटिस जारी कर तत्काल नीलामी रोकने की मांग की थी। 7 मई को नीलामी रोक दी गई और इसके बाद भारत सरकार ने इन्हें सुरक्षित रूप से वापस लाने की प्रक्रिया शुरू की।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पिपरहवा अवशेष 1898 में खोजे गए और 1899 में भारतीय संग्रहालय, कोलकाता में स्थानांतरित किए गए।
  • एक हिस्सा थाईलैंड के राजा को उपहार स्वरूप दिया गया था, जबकि पेप्पे के वंशजों के पास कुछ अवशेष रह गए थे।
  • ये अवशेष भारतीय पुरावशेष अधिनियम के तहत “AA” श्रेणी में आते हैं, जिससे इनका निर्यात या बिक्री प्रतिबंधित है।
  • ब्राह्मी लिपि में शिलालेखों के माध्यम से यह पुष्टि हुई कि यह अवशेष भगवान बुद्ध के हैं।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर इसकी जानकारी साझा करते हुए इसे भारत की सांस्कृतिक विजय बताया।

साझेदारी और सांस्कृतिक कूटनीति

यह वापसी सांस्कृतिक कूटनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें सरकारी संस्थानों और निजी उद्यम के बीच सहयोग ने वैश्विक धरोहर की रक्षा की। गोदरेज इंडस्ट्रीज़ समूह के कार्यकारी उपाध्यक्ष पिरोजशा गोदरेज ने कहा, “पिपरहवा रत्न केवल पुरावशेष नहीं, बल्कि शांति, करुणा और मानवता की साझी विरासत के चिह्न हैं।

Originally written on August 1, 2025 and last modified on August 1, 2025.

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