हड़प्पा सभ्यता: नगर व्यवस्था

हड़प्पा सभ्यता: नगर व्यवस्था

नगर व्यवस्था
सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम नगर सभ्यताओं में से एक है। सिन्धु घाटी सभ्यता में नगरों का निर्माण काफी कुशल व सुनियोंजित तरीके से किया गया था। इसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था थी और यह नगर ग्रिड पद्धति के आधार पर बना था। नगरों के निर्माण में पक्की ईंटो का निर्माण दृश्यमान होता है, नगर में नालियाँ ईंटों व पत्थरों से ढकी होती थी, इसके साथ-साथ चूना व जिप्सम भी उपयोग में लाया जाता था।
सिन्धु घाटी सभ्यता में नगरों के अव्शेह्स से पुर और पश्चिम दिशा में दो टीले मिले हैं। पश्चिमी भाग छोटा है, परन्तु वह ऊंचाई पर स्थित है। जबकि पूर्वी हिस्सा बड़ा है परन्तु वह कम ऊंचाई युक्त स्थान में स्थित है। ऊंचाई वाले क्षेत्र को नगर दुर्ग और निचले क्षेत्र को निचला नगर कहा जाता है। इन दोनों हिस्सों के चारों ओर पक्की ईंटों की दीवार बनाई गयी थी।
सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर काफी सुनियोजित व सुव्यवस्थित थे, यह नगर आयताकार थे, यह मुख्य सड़कों और चौड़ी गलियों पर आधारित थे। सड़कें एक दुसरे को समकोण बनाते हुए काटती थीं। नगर को कई भागों में बांटा गया था। सड़कें मिटटी से बने गयी थी, जबकि सड़क के दोनों ओर पक्की ईंटों से नालियों का निर्माण किया गया था। इन नालियों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर “नर मोखे” भी बनाये गए थे।
भवन व वास्तुकला
सिन्धु घाटी सभ्यता में विशालकाल भवनों के संकेत मिलते हैं, प्रमुख विशाल भवन स्नानागार, अन्नागार, सभा भवन, पुरोहित आवास इत्यादि थे। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजानिक स्थान विशाल स्नानागार है, इसका जलाशय दुर्ग के टीले में स्थित है। यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। इस स्नानागार के निर्माण में पक्की ईंटो का उपयोग किया गया है, इन ईंटों को जोड़ने के लिए जिप्सम और मोर्टार का उपयोग किया गया है। सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा भवन अन्नागार है। अन्नागार की लम्बाई 45.71 मीटर तथा चौड़ाई 15.23 मीटर है।
सिन्धु घाटी सभ्यता में बहुत सारे स्तंभों से निर्मित एक सभागार और एक आयताकार इमारत भी मिले हैं। यह माना जाता है कि इन इमारतों का उपयोग प्रशासकीय कार्य के लिए किया जाता था। हड़प्पा के अधिकतर साक्ष्य दुर्ग के उत्तर में मिले हैं।यही से अन्नागार (6-6 की दो पंक्तियों), मजदूरों के अवाद और गोल चबूतरे मिले हैं। यहाँ अन्नागार दुर्ग के बाहर स्थित है। सिन्धु घाटी सभ्यता में जुदाई के लिए मिट्टी के गारे और जिप्सम के मिश्रण का उपयोग करते थे।
आवासीय भवन
आवासीय भवनों का निर्माण भी बड़ी कुशलतापूर्वक किया गया था, सभी आवासों के बीच में एक आँगन होता था, और आँगन के चारों ओर कमरे, रसोईघर, स्नानागार व अन्य कक्ष होते थे। सामान्यतः स्नानागार गली की ओर बने होते थे। आवसीय भवनों के दरवाज़े मध्य भाग की अपेक्षा किनारों पर बनाये जाते थे। ईंटों के निर्माण का अनुपात 4:2:1 निश्चित था।
सभी आवासीय भवनों में स्नानागार, कुआँ व जल निकासी की व्यवस्था होती थी। भवनों के निर्माण में एकरूपता थी। सिन्धु घाटी सभ्यता के आवासीय भवनों की एक विशिष्टता यह है की इसमें घरों के दरवाज़े मुख्य सड़क की बजाय पीछे की ओर खुलते थे, ऐसा शोर से बचने के लिए किया जाता था। लोथल में ही खिड़कियाँ बाहर की ओर खुलती थीं। मकानों का आकार छोटा होता था, इनमे आमतौर पर 4-5 कमरे होते थे और कई स्थानों पर दो मंजिला मकानों के भी अवशेष मिले हैं।

Originally written on May 1, 2019 and last modified on May 1, 2019.

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