होरमुज़ जलडमरूमध्य संकट: ईरान के फैसले से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर मंडराया खतरा

22 जून 2025 को ईरान की संसद ने अमेरिका के सैन्य हमले के जवाब में होरमुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह प्रस्ताव अब ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के पास अंतिम निर्णय के लिए भेजा जाएगा। यदि यह रणनीति लागू होती है, तो इसके गंभीर वैश्विक और भारतीय आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं।
होरमुज़ जलडमरूमध्य का भू-राजनीतिक महत्व
होरमुज़ जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है, जो आगे अरब सागर से जुड़ती है। यह दुनिया का सबसे व्यस्त और रणनीतिक रूप से संवेदनशील समुद्री मार्ग है। इसके जरिए ईरान, सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देश अपने कच्चे तेल और एलएनजी को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात करते हैं।
यह जलडमरूमध्य मात्र 33 किलोमीटर चौड़ा है, और इसमें जहाजों के आवागमन के लिए केवल 3 किलोमीटर की संकरी लेन है, जिससे इसे अवरुद्ध करना तकनीकी रूप से आसान हो जाता है।
वैश्विक तेल आपूर्ति पर प्रभाव
2024 और 2025 की पहली तिमाही में, वैश्विक समुद्री तेल व्यापार का एक-चौथाई हिस्सा होरमुज़ के रास्ते होकर गुजरा। इसके माध्यम से प्रतिदिन लगभग 20 मिलियन बैरल तेल और वैश्विक एलएनजी व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत निर्यात हुआ।
यदि यह जलडमरूमध्य अवरुद्ध होता है, तो तेल और गैस की वैश्विक आपूर्ति बाधित होगी, जिससे कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त, बीमा और सुरक्षा खर्च बढ़ने से जहाजरानी और महंगी हो जाएगी।
भारत पर संभावित प्रभाव
- ऊर्जा आयात निर्भरता: भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 60% हिस्सा पश्चिम एशिया से प्राप्त करता है। 2024 में, होरमुज़ से गुजरने वाले कच्चे तेल का लगभग 84% हिस्सा एशियाई बाज़ारों — विशेषकर भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया — की ओर गया।
- कीमतों में अस्थिरता: होरमुज़ का बंद होना भले ही आपूर्ति को पूरी तरह न रोक पाए, लेकिन कीमतों में भारी उछाल लाएगा। भारत को रूस, अमेरिका, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से भी तेल मिलता है, परंतु वैकल्पिक आपूर्ति मार्ग महंगे होंगे।
- आर्थिक दबाव: कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ेंगे, जिससे महंगाई पर प्रभाव पड़ेगा। व्यापार, परिवहन, कृषि, उद्योग — सभी क्षेत्रों में लागत में वृद्धि देखने को मिलेगी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- होरमुज़ जलडमरूमध्य की चौड़ाई: न्यूनतम 33 किमी; शिपिंग लेन सिर्फ 3 किमी
- प्रतिदिन का तेल व्यापार: लगभग 20 मिलियन बैरल
- एशियाई बाज़ार की हिस्सेदारी: 84% तेल और 83% एलएनजी
- भारत पर प्रभाव: ऊर्जा लागत में वृद्धि, महंगाई का खतरा, व्यापार घाटा बढ़ने की संभावना
निष्कर्ष
होरमुज़ जलडमरूमध्य का बंद होना भारत सहित पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा भू-राजनीतिक और आर्थिक संकट खड़ा कर सकता है। भारत को अपनी ऊर्जा रणनीति की पुनर्समीक्षा करनी होगी, जिसमें रणनीतिक तेल भंडार, वैकल्पिक आपूर्ति समझौते और राजनयिक प्रयासों को प्राथमिकता देना शामिल है। ऐसे समय में संतुलित विदेश नीति और सतर्कता ही भारत के लिए सबसे प्रभावी हथियार साबित हो सकते हैं।