हिमालयी राज्यों में बादल फटने और फ्लैश फ्लड पर बड़ा सर्वे: NDMA और ISRO की संयुक्त पहल

हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बार-बार हो रही बादल फटने की घटनाएं, फ्लैश फ्लड और भूस्खलन ने जान-माल की भारी क्षति पहुंचाई है। इन आपदाओं के मूल कारणों की पहचान और समाधान के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और जम्मू-कश्मीर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (J&K SDMA) ने एक समग्र सर्वेक्षण शुरू किया है। इस प्रयास में इसरो (ISRO) की सैटेलाइट मैपिंग तकनीक का सहारा लिया जा रहा है ताकि हिमालयी क्षेत्रों में जलस्रोतों और संभावित खतरे की सही तस्वीर सामने लाई जा सके।

जलप्रलय की जड़ तक पहुंचने की कोशिश

NDMA और J&K SDMA का यह संयुक्त सर्वेक्षण बादल फटने और अचानक आई बाढ़ों के पीछे के कारणों को जानने के लिए किया जा रहा है। इसरो की मदद से हिमालय की ऊंची चोटियों और दुर्गम झीलों की सैटेलाइट मैपिंग की जा रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहां से इतनी भारी मात्रा में पानी अचानक निकल रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट केवल भारी बारिश का नहीं, बल्कि बहुस्तरीय है — इसमें ग्लेशियल झील फटना (Glacial Lake Outburst Flood – GLOF), भूस्खलन, माइक्रो-भूकंपीय गतिविधियाँ और जलवायु परिवर्तन जैसे कई घटक मिलकर आपदा को जन्म दे रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन और भूकंपीय हलचल की भूमिका

राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सलाहकार ओपी मिश्रा ने बताया कि हिमालय क्षेत्र पहले से ही उच्च भूकंपीय संवेदनशीलता वाला क्षेत्र है। जब धरती की प्लेटें टकराती हैं तो चट्टानों में दरारें आती हैं, और जैसे ही पानी इन दरारों में घुसता है, उच्च दबाव के कारण वह तेजी से निकलता है, जिससे फ्लैश फ्लड जैसी आपदाएं होती हैं।
इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में बर्फ की मोटाई घट रही है, जिससे भूकंपीय भार में बदलाव आ रहा है और छोटी-छोटी भूकंपीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं। यही घटनाएं बर्फ के पिघलने की गति बढ़ा रही हैं और आपदा के खतरे को और अधिक बढ़ा रही हैं।

डिजास्टर-रेज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हर साल ऐसे नुकसान होते रहेंगे तो हमें जापान की तरह डिजास्टर-रेज़िलिएंट यानी आपदा-प्रतिरोधी घरों, पुलों और बिजली संयंत्रों का निर्माण करना होगा। स्थानीय लोगों के लिए जागरूकता अभियान चलाना और संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण पर रोक लगाना भी जरूरी है।
उत्तराखंड के धाराली गांव में 6 अगस्त को आई बाढ़ में पूरा गांव बह गया। 28 अगस्त को फिर एक और बादल फटा, जिससे चमोली और रुद्रप्रयाग जैसे जिलों में तबाही मच गई। जम्मू-कश्मीर के रामबन में भी बादल फटने से चार लोगों की मौत हो गई, जबकि रियासी में एक ही परिवार के सात लोग भूस्खलन में मारे गए।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NDMA और J&K SDMA ने मिलकर हिमालयी क्षेत्रों में फ्लैश फ्लड और बादल फटने पर सर्वेक्षण शुरू किया है।
  • ISRO सैटेलाइट मैपिंग के ज़रिए हिमालय की ऊंची और दुर्गम झीलों की निगरानी कर रहा है।
  • विशेषज्ञों ने डिजास्टर-रेज़िलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्थानीय स्तर पर जन-जागरूकता को समाधान बताया है।
  • उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में हाल के वर्षों में GLOF, भूकंपीय गतिविधियाँ और जलवायु परिवर्तन मिलकर आपदाओं को बढ़ा रहे हैं।

भारत के हिमालयी राज्यों में बार-बार हो रही प्राकृतिक आपदाएं अब चेतावनी मात्र नहीं रहीं, बल्कि एक नई रणनीति की माँग कर रही हैं। NDMA, J&K SDMA और ISRO जैसे संस्थानों की संयुक्त पहल दिखाती है कि सरकार इस दिशा में गंभीर है। लेकिन केवल सर्वेक्षण और विश्लेषण ही काफी नहीं — इस संकट का समाधान बहुस्तरीय और सतत होना चाहिए, जिसमें विज्ञान, इंजीनियरिंग, स्थानीय सहभागिता और नीति निर्माण सबका समावेश हो।

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