हिमालयी आपदाएं और बदलता मानसून: विकास बनाम प्रकृति का संघर्ष

पिछले कुछ वर्षों में भारत के हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने, भूस्खलन, और बाढ़ जैसी आपदाएं आम होती जा रही हैं। इस मानसून सीजन में देहरादून, मंडी, उत्तरकाशी, जोशीमठ, और कई अन्य स्थानों पर भारी तबाही देखने को मिली। इन घटनाओं ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे बुनियादी ढांचे का तेजी से विस्तार हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी पर भारी पड़ रहा है?
अत्यधिक वर्षा और बादल फटने की घटनाएं
देहरादून और मंडी में हालिया बादल फटने की घटनाओं में दर्जनों लोगों की मृत्यु हुई और सड़कें, पुल, और भवन तबाह हो गए। उत्तरकाशी के पास धाराली गांव में मात्र 33 मिमी वर्षा के बावजूद ऊपर पहाड़ों से आए मलबे और पानी के तेज बहाव ने 20 सेकंड में दर्जनों भवनों को जमींदोज कर दिया। यह घटना इस बात का संकेत है कि ऊँचाई से नीचे गिरता भारी जलमिश्रित मलबा कितनी विनाशकारी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।
चारधाम परियोजना और पारिस्थितिकीय खतरे
चारधाम ऑल-वेदर रोड परियोजना, जो लगभग 900 किमी लंबी है, का एक बड़ा हिस्सा भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन (BESZ) से होकर गुजरता है। इस ज़ोन में 13,000 से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं और हजारों और पेड़ कटने की कगार पर हैं। 238 ग्लेशियर वाले इस क्षेत्र में निर्माण कार्य से जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की समस्या और गंभीर हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित निर्माण और पर्यटन की आलोचना करते हुए चेतावनी दी कि यदि यही हाल रहा, तो राज्य मानचित्र से गायब हो सकता है।
तीर्थ यात्राएं और बढ़ता खतरा
जम्मू-कश्मीर में इस बार की मैचाैल माता यात्रा के दौरान बाढ़ ने 46 तीर्थयात्रियों की जान ले ली, जबकि 100 से अधिक लोग लापता हो गए। एक हफ्ते बाद कटरा और वैष्णो देवी में भी भारी बारिश और भूस्खलन से पचास से अधिक मौतें हुईं। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि तीर्थस्थलों पर अस्थायी ढांचे भी सुरक्षित स्थानों पर बनाए जाने चाहिए, विशेषकर जब बादल फटने की घटनाएं अब आम हो चली हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन (BESZ) का क्षेत्रफल लगभग 4157 वर्ग किमी है।
- चारधाम परियोजना में 13,000 से अधिक पेड़ों की कटाई की अनुमति BESZ के अंदर दी गई है।
- वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा में लगभग 3000 लोगों की मृत्यु हुई थी।
- वर्ष 2021 में ऋषिगंगा-धौलीगंगा हादसे में 200 से अधिक मजदूरों की जान गई थी।