हिमाचल प्रदेश में 2027 में होगी जातिगत जनगणना, बर्फीले क्षेत्रों में 2026 से होगी शुरुआत

केंद्र सरकार ने अगले जनगणना कार्यक्रम की अधिसूचना जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि इसमें विस्तृत जातिगत गणना भी शामिल होगी, जिसकी शुरुआत अक्टूबर 2026 से हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के कुछ बर्फबंद क्षेत्रों में होगी। बाकी हिमाचल प्रदेश में यह जनगणना 2027 में की जाएगी। यह जातिगत जनगणना हिमाचल की सामाजिक संरचना, नीतिगत दिशा और न्यायिक विवादों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
हिमाचल की जातीय संरचना
हिमाचल की कुल जनसंख्या लगभग 77.56 लाख है, जिसमें अनुसूचित जातियों (SC) का हिस्सा लगभग 25%, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का 13.52% और अनुसूचित जनजातियों (ST) का 5.71% है। राज्य में 57 जातियों को SC के रूप में, 52 को OBC के रूप में और 11 समुदायों को ST के रूप में अधिसूचित किया गया है। हाल ही में सिरमौर जिले की ट्रांस-गिरी घाटी की ‘हट्टी’ समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है।
हिमाचल में कैसे होगी जातिगत जनगणना?
जनगणना संचालन निदेशालय, हिमाचल प्रदेश के अनुसार, यह सर्वेक्षण राज्य सरकार के कर्मचारियों — जैसे कि शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि — द्वारा किया जाएगा। ये कर्मचारी प्रशिक्षित किए जाएंगे और घर-घर जाकर डिजिटल उपकरणों या कागजी फॉर्म के माध्यम से जानकारी एकत्र करेंगे। जानकारी में जाति प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेजों के आधार पर सत्यापन भी शामिल होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- हिमाचल प्रदेश में 1931 के बाद पहली बार व्यापक जातिगत जनगणना की जाएगी।
- SC वर्ग की प्रमुख जातियाँ: कोरी/कोली, लोहार, जुलाहा, बाल्मीकि, खटीक, जोगी, अधधर्मी, धनक आदि।
- ST वर्ग में हट्टी, गुज्जर, पंगवाल, गद्दी आदि समुदाय शामिल हैं।
- जनगणना से एकत्र आंकड़ों से जाति आधारित सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण किया जाएगा।
हट्टी समुदाय का विवाद
2023 में हट्टी समुदाय को ST का दर्जा दिए जाने पर विवाद शुरू हुआ। SC और OBC वर्ग के कुछ प्रतिनिधियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि हट्टी समुदाय में कई उच्च जातियों के लोग भी हैं, जिससे आरक्षण का लाभ असली वंचित वर्गों को नहीं मिल पाएगा। फिलहाल इस अधिसूचना पर न्यायालय द्वारा स्थगन लगाया गया है और अगली सुनवाई 7 जुलाई को निर्धारित है।
जातिगत जनगणना का राजनीतिक प्रभाव
राज्य की 68 विधानसभा सीटों में से 17 SC और 3 ST के लिए आरक्षित हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल में राजनीति जाति की अपेक्षा क्षेत्रीय संतुलन से अधिक प्रभावित होती है। ऊपरी हिमाचल (जैसे शिमला, कुल्लू) लंबे समय से सत्ता में हावी रहा है, जबकि निचला हिमाचल (जैसे कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना) अक्सर खुद को हाशिये पर मानता है।
हालांकि, अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार चंद शर्मा के अनुसार, यह जातिगत जनगणना कई सामाजिक और राजनीतिक आयामों को बदल सकती है। इससे न केवल कल्याणकारी योजनाओं के लिए सटीक आंकड़े मिलेंगे, बल्कि भविष्य की नीतियों और आरक्षण व्यवस्था को नया रूप देने की संभावना भी बनेगी।
हिमाचल प्रदेश में प्रस्तावित जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम कदम हो सकती है, जो नीतिगत और ऐतिहासिक रूप से दूरगामी प्रभाव डालेगी।