हिमाचल के सोलन में 600 मिलियन वर्ष पुराने स्ट्रोमैटोलाइट्स की खोज: पृथ्वी के प्रारंभिक जीवन की झलक

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के चंबाघाट क्षेत्र में हाल ही में 600 मिलियन वर्ष पुराने स्ट्रोमैटोलाइट्स की खोज ने भूवैज्ञानिक समुदाय में उत्साह और जिज्ञासा का संचार किया है। ये प्राचीन संरचनाएं पृथ्वी के प्रारंभिक जीवन और वायुमंडलीय विकास की महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं, जो हमें हमारे ग्रह के इतिहास की गहराई में ले जाती हैं।
स्ट्रोमैटोलाइट्स: जीवन की प्रारंभिक गाथा
स्ट्रोमैटोलाइट्स जैव-तलछटी संरचनाएं हैं, जो मुख्यतः सायनोबैक्टीरिया (नील-हरित शैवाल) द्वारा निर्मित होती हैं। ये सूक्ष्मजीव समुद्री जल में तलछट को फँसाकर और बाँधकर परतदार संरचनाएं बनाते हैं। चंबाघाट में पाए गए स्ट्रोमैटोलाइट्स लगभग 600 मिलियन वर्ष पुराने हैं, जो पृथ्वी के उस कालखंड के साक्षी हैं जब वायुमंडल में ऑक्सीजन का अभाव था और जीवन केवल सूक्ष्मजीवों तक सीमित था ।
ऑक्सीजन क्रांति और जीवन का विकास
सायनोबैक्टीरिया द्वारा किए गए प्रकाश संश्लेषण के परिणामस्वरूप वायुमंडल में ऑक्सीजन का संचय हुआ, जिसे “महान ऑक्सीकरण घटना” (Great Oxidation Event) कहा जाता है। यह घटना लगभग 2.4 अरब वर्ष पूर्व हुई, जिसने पृथ्वी के वायुमंडल को ऑक्सीजन युक्त बनाया और बहुकोशिकीय जीवन के विकास का मार्ग प्रशस्त किया ।
टेथिस सागर और हिमालय का उद्भव
चंबाघाट में पाए गए स्ट्रोमैटोलाइट्स क्रोल समूह की तलछटी चट्टानों में स्थित हैं, जो कभी टेथिस सागर के उथले समुद्री वातावरण में बनी थीं। भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने के परिणामस्वरूप टेथिस सागर का अंत हुआ और उसकी तलछटी चट्टानों का उत्थान होकर हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ ।
खोजकर्ता डॉ. रितेश आर्य और उनका योगदान
इस महत्वपूर्ण खोज का श्रेय प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. रितेश आर्य को जाता है, जो कसौली स्थित टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम के संस्थापक हैं। उन्होंने चंबाघाट के जोलाजोरन गाँव में इन स्ट्रोमैटोलाइट्स की पहचान की। डॉ. आर्य ने इन संरचनाओं को “जीवित पत्थर की आत्मकथाएं” कहा है, जो पृथ्वी के प्रारंभिक जीवन और जलवायु परिवर्तन की कहानी कहती हैं ।
संरक्षण और भू-पर्यटन की आवश्यकता
डॉ. आर्य ने चंबाघाट क्षेत्र को राज्य भू-धरोहर स्थल घोषित करने की मांग की है, ताकि इन महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक संरचनाओं का संरक्षण किया जा सके और वैज्ञानिक अनुसंधान एवं भू-पर्यटन को बढ़ावा मिले। उनका मानना है कि ऐसे स्थलों का संरक्षण न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक अवसर भी प्रदान कर सकता है ।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- स्ट्रोमैटोलाइट्स: ये पृथ्वी पर ज्ञात सबसे प्राचीन जीवन के प्रमाण हैं, जो लगभग 3.5 अरब वर्ष पूर्व से अस्तित्व में हैं।
- महान ऑक्सीकरण घटना: यह घटना लगभग 2.4 अरब वर्ष पूर्व हुई, जब सायनोबैक्टीरिया द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन वायुमंडल में जमा होने लगी।
- टेथिस सागर: यह एक प्राचीन महासागर था, जो गोंडवाना और लॉरेशिया महाद्वीपों के बीच स्थित था। भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने के बाद इसका अंत हुआ और हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ।
- टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम: कसौली में स्थित यह संग्रहालय डॉ. रितेश आर्य द्वारा स्थापित किया गया है, जिसमें लगभग 500 जीवाश्मों का संग्रह है, जो हिमालय क्षेत्र की भूवैज्ञानिक और जैविक इतिहास को दर्शाते हैं ।
चंबाघाट में पाए गए 600 मिलियन वर्ष पुराने स्ट्रोमैटोलाइट्स न केवल पृथ्वी के प्रारंभिक जीवन के प्रमाण हैं, बल्कि वे हमें यह भी सिखाते हैं कि सूक्ष्मजीवों ने कैसे हमारे ग्रह के वातावरण को बदलकर जीवन के लिए अनुकूल बनाया। इन संरचनाओं का संरक्षण और अध्ययन न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें हमारे ग्रह के इतिहास को समझने और उसकी सराहना करने में भी मदद करता है।