हिंदी साहित्य में रीतिकाल

हिंदी साहित्य में रीतिकाल

हिंदी साहित्य में रीति काल 1600 ईस्वी से शुरू होकर 1850 ई.तक रहा। रीति काल या शैक्षिक काल के कवियों को उनके विषय के आधार पर दो समूहों में मूल रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें रीतिबद्ध और रीतिमुक्त शामिल हैं। चिंतामणि, केशव, मति राम, देवा, कुलपति मिश्रा और भिखारीदास जैसे कवि रीतिबद्ध शैली के प्रणेता थे। दूसरे समूह में आलम, घनानंद, बोध और ठाकुर जैसे स्वतंत्र विचार वाले कवि हैं। इस युग में वृंदा, वैताल और गिरिधर द्वारा रचित छंदों में उपदेशात्मक कविता के दो और काव्यात्मक रुझान देखे गए। हिंदी साहित्य में विद्वतापूर्ण काल ​​में काव्य सिद्धांत पर इस जोर ने कविता के भावनात्मक पहलुओं को बहुत कम कर दिया था, जो भक्ति काल के भक्ति आंदोलन का प्रमुख पहलू था। परिणामस्वरूप काव्य सामग्री, धीरे-धीरे पतित होने लगी। रीति काल ने अपने अधिकांश कार्यों को कृष्ण भक्ति के तहत पूरा किया। हिंदी साहित्य के इस युग की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक बिहारी सत्सई है, जो वास्तव में दोहों का संग्रह है, जो भक्ति, नीति, और श्रृंगार से जुड़ी है। बिहारीलाल ऐसे कवि थे जिन्होने प्रेम से हटकर नीति नियमों पर भी दोहे लिखे

Originally written on August 27, 2021 and last modified on August 27, 2021.

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