हरियाणा सरकार ने ‘वन’ की नई परिभाषा जारी की, पर्यावरणविदों में विरोध

हरियाणा सरकार ने 18 अगस्त को एक आधिकारिक अधिसूचना के माध्यम से ‘वन’ की शब्दकोशीय परिभाषा (dictionary meaning of forest) को स्पष्ट किया है। सरकार का कहना है कि यह परिभाषा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और न्यायिक अपेक्षाओं पर आधारित है, लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बहुत सीमित और संकीर्ण है, जिससे अरावली क्षेत्र जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील भूभागों को कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाएगा।
हरियाणा की नई वन परिभाषा
सरकारी अधिसूचना के अनुसार, कोई भी भूभाग “वन” तभी माना जाएगा यदि वह:
- कम से कम 5 हेक्टेयर का हो (यदि अकेले स्थित है) या
- कम से कम 2 हेक्टेयर का हो (यदि पहले से अधिसूचित वन क्षेत्र के साथ जुड़ा हुआ है),
- और उसमें कम से कम 40% (0.4) कैनोपी घनत्व हो।
इसके साथ-साथ, सभी रेखीय/समरूप/कृषि वानिकी वृक्षारोपण और बागवानी क्षेत्र, जो अधिसूचित वन क्षेत्रों से बाहर हैं, उन्हें वन नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की पृष्ठभूमि और निर्देश
- मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे वन की अपनी परिभाषा स्पष्ट करें और GIS आधारित सर्वेक्षण शुरू करें।
- यह निर्देश Forest (Conservation) Act, 1980 में संशोधन और उसकी वैधता को लेकर चल रहे Ashok Kumar Sharma बनाम भारत सरकार मामले की सुनवाई के संदर्भ में आया।
- अदालत ने 1996 के Godavarman फैसले को आधार मानते हुए कहा था कि वन का अर्थ उसकी शब्दकोशीय परिभाषा के अनुसार लिया जाए, जो आकार, स्वामित्व या अधिसूचना की परवाह किए बिना लागू हो सकता है।
पर्यावरणविदों की आलोचना
- 40% कैनोपी घनत्व की सीमा बहुत अधिक मानी जा रही है, विशेष रूप से अरावली जैसी शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों के लिए, जहाँ वर्षा कम (300-600 मिमी/वर्ष) होती है और वनस्पति प्राचीन लेकिन बिखरी हुई है।
- वन विश्लेषक चेतन अग्रवाल के अनुसार, यह परिभाषा अरावली की पारिस्थितिकी को “Forest Conservation Act” की सुरक्षा से बाहर कर देगी और यह Godavarman निर्णय की भावना का उल्लंघन है।
- उन्होंने यह भी कहा कि 2 और 5 हेक्टेयर की न्यूनतम सीमा जैसे शुष्क राज्य के लिए अव्यावहारिक है और इसे 1 और 2 हेक्टेयर किया जाना चाहिए था।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Forest (Conservation) Act, 1980 के तहत वनभूमि का गैर-वन कार्यों के लिए उपयोग बिना केंद्र की अनुमति के प्रतिबंधित है।
- Godavarman v. Union of India (1996) निर्णय में ‘वन’ को शब्दकोशीय अर्थ के अनुसार समझने की व्यवस्था दी गई थी।
- 2023 में FCA में संशोधन कर इसे केवल अधिसूचित वनों और रिकॉर्ड में दर्ज वनों तक सीमित करने की कोशिश की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
- सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2024 में GIS आधारित सर्वेक्षण और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश सभी राज्यों को दिया है, जिसकी अंतिम सुनवाई 9 सितंबर 2025 को तय है।
हरियाणा की परिभाषा के अनुसार अरावली जैसे क्षेत्रों को ‘वन’ की कानूनी परिभाषा में लाना मुश्किल हो जाएगा, जिससे इन क्षेत्रों में खनन, रियल एस्टेट विकास और अवैध अतिक्रमण को बढ़ावा मिल सकता है। यह मुद्दा केवल हरियाणा नहीं, बल्कि पूरे देश के वन और पारिस्थितिक संतुलन के लिए निर्णायक बनता जा रहा है।