हरित वित्तपोषण में भारत की भूमिका: जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति के लिए वैश्विक पूंजी की अहमियत

भारत ने अब तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिकांश वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति घरेलू संसाधनों के माध्यम से की है। इन प्रयासों में सरकारी बजट, बाज़ार आधारित उपाय, राजकोषीय साधन और नीतिगत हस्तक्षेप शामिल रहे हैं। हालांकि, जलवायु लक्ष्यों की विशालता को देखते हुए वैश्विक हरित वित्त और विदेशी निजी पूंजी की भागीदारी अब अत्यंत आवश्यक हो गई है।
भारत की जलवायु रणनीति और वित्तीय आवश्यकताएँ
भारत की प्रारंभिक राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDC) के अनुसार, 2015 से 2030 के बीच जलवायु कार्रवाई के लिए अनुमानित लागत $2.5 ट्रिलियन (2014-15 के मूल्य स्तर पर) आँकी गई थी। इसका उद्देश्य 2005 के स्तर से जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना है।2022 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क (UNFCCC) के समक्ष दीर्घकालिक निम्न-कार्बन विकास रणनीति (LT-LEDS) प्रस्तुत की, जिसके अनुसार 2050 तक यह आवश्यकता $10 ट्रिलियन से अधिक हो सकती है।
वैश्विक हरित वित्त का बढ़ता दायरा
हरित/सतत ऋण वित्त का वैश्विक स्तर पर तीव्र विकास हुआ है।
- मार्च 2013 से दिसंबर 2024 तक वैश्विक सतत/हरित ऋण निर्गम $8.86 ट्रिलियन तक पहुँच चुका है।
- इसमें परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं की हिस्सेदारी 68.25% है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मात्र 17.25%।
भारत की हिस्सेदारी इस कुल में केवल 1.03% ($91.2 बिलियन) है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में 5.97% पर पहुँचती है। चीन, इसके विपरीत, वैश्विक स्तर पर 7.8% और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में 45.21% हिस्सेदारी रखता है।
भारत में हरित वित्तपोषण के उपाय
भारत ने 2022-23 के बजट में कई अहम कदम उठाए:
- सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड के माध्यम से ₹80 अरब जुटाए गए।
- निजी क्षेत्र में YES बैंक ने 2015 में $260 मिलियन का पहला ग्रीन बॉन्ड जारी किया।
- अब तक कुल ₹76.53 अरब ग्रीन बॉन्ड से जुटाए जा चुके हैं।
इसके बावजूद, जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक वित्त अभी भी बहुत अधिक है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत की दीर्घकालिक जलवायु रणनीति (LT-LEDS) नवंबर 2022 में UNFCCC को सौंपी गई थी।
- Business Responsibility and Sustainability Reporting (BRSR) भारत में शीर्ष 1000 सूचीबद्ध कंपनियों के लिए अनिवार्य है।
- भारत ने 2023 में पहली बार सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी किए थे।
- ग्रीन बॉन्ड्स की वैश्विक हिस्सेदारी में भारत केवल 1% है, जबकि चीन 7.8% के साथ अग्रणी है।