“हरित विकास या सामाजिक अन्याय?”: भारत की शहरी विकास योजनाएं गरीबों को क्यों हाशिये पर छोड़ रही हैं

भारत में बीते वर्षों में “हरित और टिकाऊ” शहरी विकास की दिशा में अनेक महत्त्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की गईं हैं — जैसे AMRUT, स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी योजना, और हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहन कॉरिडोर। परंतु इन योजनाओं की असलियत में एक गहरी खाई है: विकास का लाभ मुख्यतः शहरी मध्यम वर्ग और निवेशकों तक सीमित है, जबकि गरीब, विशेषकर झुग्गीवासियों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों, को या तो उजाड़ा गया है या उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
मुंबई से दिल्ली तक: ‘हरित’ परियोजनाओं की हकीकत
- मुंबई का कोस्टल रोड प्रोजेक्ट (29 किमी, ₹13,000 करोड़) केवल 2% आबादी को सेवा देगा, पर इसके लिए 0.9 किमी² समुद्रतट की ज़मीन भरी गई है, जिससे मछुआरे समुदाय की आजीविका और समुद्री पारिस्थितिकी को नुकसान हुआ है।
- दिल्ली में यमुना किनारे ‘ग्रीन पार्क’ बनाते समय हज़ारों झुग्गी निवासी बेघर हो गए, बिना किसी वैकल्पिक आवास के।
स्वच्छ भारत और AMRUT: लक्ष्यों से कोसों दूर
- स्वच्छ भारत मिशन के तहत घोषित ओडीएफ (Open Defecation Free) स्थिति वास्तविकता में अपूर्ण है। एक जांच में मध्य प्रदेश में ₹540 करोड़ का घोटाला सामने आया, जहां 4.5 लाख शौचालय कभी बने ही नहीं।
- AMRUT योजना में जल निकासी, सीवरेज और हरित क्षेत्र सुधार जैसे कार्यों में भारी अनियमितताएँ पाई गईं। उदाहरण: हरियाणा के सिरसा में ₹40 करोड़ खर्च के बाद भी जलजमाव की समस्या बनी रही।
स्मार्ट सिटी योजना: अमीरों के लिए ‘स्मार्ट’, गरीबों के लिए विस्थापन
₹2 लाख करोड़ की स्मार्ट सिटी योजना के तहत अब तक 518 परियोजनाएं अधूरी हैं। जो परियोजनाएं पूरी हुईं, वे आमतौर पर अपमार्केट इलाकों या आईटी हब में केंद्रित हैं। वहीं, झुग्गीवासियों की बस्तियाँ ‘अवैध अतिक्रमण’ बताकर उजाड़ी जाती हैं, जैसा कि 2023 में दिल्ली में 2.78 लाख लोगों की बेदखली से जाहिर होता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- AMRUT योजना 2015 में शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य 500 शहरों में शहरी आधारभूत ढांचे को मजबूत करना था।
- स्वच्छ भारत मिशन का लक्ष्य 2019 तक भारत को ओडीएफ बनाना था, पर भ्रष्टाचार व कागजी ढांचे ने इसे एक “राजनीतिक नारा” बना दिया।
- स्मार्ट सिटी योजना के तहत 100 शहरों को स्मार्ट व टिकाऊ बनाने की योजना थी, लेकिन असमान विकास और ग्रीन गेट्रिफिकेशन (नगरीय पुनर्निमाण) ने इसे विवादास्पद बना दिया।
असमानता की नई शक्ल: EV ज़ोन और ‘ग्रीन डेवलपमेंट’
बेंगलुरु, दिल्ली और पुणे जैसे शहरों में ईवी जोन बनाकर वायु प्रदूषण कम करने की कोशिश हो रही है, लेकिन पुराने वाहन उपयोगकर्ताओं (जैसे ऑटो-ड्राइवर, असंगठित कामगार) को आर्थिक दंड और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। यह “हरित विकास” के नाम पर वर्गीय बहिष्करण का उदाहरण बन गया है।
समाधान: “हरित न्याय” की ओर कदम
सच्चा टिकाऊ शहरी विकास तभी संभव है जब पारिस्थितिकीय संतुलन के साथ सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित हो। इसके लिए:
- हर हरित परियोजना में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (Social Impact Assessment) अनिवार्य किया जाए।
- सस्ती आवास योजना को हर ग्रीन ज़ोन में शामिल किया जाए।
- पुनर्वास और मुआवजा योजना को समुदाय के साथ मिलकर तैयार किया जाए।
- वॉर्ड समितियों, RWA और NGOs को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
- ईवी योजनाओं में गरीब चालकों के लिए सब्सिडी, प्रशिक्षण और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता दी जाए।
भारत के शहरों को वास्तव में “स्मार्ट” और “हरित” तभी कहा जा सकता है, जब विकास का लाभ हर तबके तक समान रूप से पहुँचे, न कि केवल अमीरों की सुविधा बन जाए। विकास का असली चेहरा तभी बदलेगा, जब लोगों को हटाकर नहीं, साथ लेकर योजनाएं बनाई जाएंगी।