स्वच्छ सर्वेक्षण 2025: छोटे शहरों ने मेट्रो शहरों को पीछे छोड़ा
स्वच्छ भारत मिशन के दस वर्षों के बाद भी भारत का शहरी स्वच्छता परिदृश्य विरोधाभासों से भरा हुआ है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 की हालिया रिपोर्ट में जहाँ इंदौर, सूरत और नवी मुंबई जैसे शहरों ने फिर से स्वच्छता में अपनी साख को बरकरार रखा है, वहीं बेंगलुरु, चेन्नई और दिल्ली जैसे बड़े महानगर देश के सबसे गंदे शहरों की सूची में शामिल हो गए हैं।
स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 की मुख्य बातें
स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 के आंकड़े दर्शाते हैं कि शहरी क्षेत्रों में सफाई को लेकर अभी भी गंभीर चुनौतियाँ बनी हुई हैं। मदुरै को इस बार देश का सबसे गंदा शहर घोषित किया गया, जिसे कुल 4823 अंक प्राप्त हुए। इसके बाद लुधियाना, चेन्नई, रांची और बेंगलुरु क्रमशः सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों में शामिल रहे। यह रिपोर्ट तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, अपर्याप्त कचरा प्रबंधन, और नागरिक अनुशासन की कमी की ओर इशारा करती है।
मेट्रो शहरों की गिरती साख
बेंगलुरु, जो भारत का तकनीकी केंद्र माना जाता है, स्वच्छता रैंकिंग में पाँचवाँ सबसे गंदा शहर बन गया है। चेन्नई और दिल्ली की स्थिति भी चिंताजनक रही, जहाँ चेन्नई तीसरे और दिल्ली दसवें स्थान पर रही। इन शहरों में पर्याप्त संसाधनों के बावजूद कचरा निपटान और जल निकासी व्यवस्था की कमी साफ़ दिखाई देती है। ग्रेटर मुंबई और फरीदाबाद जैसे समृद्ध नगर भी इस सूची में सम्मिलित हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि केवल वित्तीय संसाधन सफाई सुनिश्चित नहीं कर सकते।
छोटे शहरों की बड़ी उपलब्धि
स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 ने यह सिद्ध किया है कि छोटे और मध्यम आकार के शहर, सीमित संसाधनों के बावजूद, स्वच्छता के मामले में मेट्रो शहरों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। अहमदाबाद, भोपाल, रायपुर और जबलपुर जैसे शहरों ने प्रभावी कचरा पृथक्करण, नागरिक सहभागिता और स्वच्छ सार्वजनिक स्थलों के जरिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। यह साफ़ दर्शाता है कि समुदाय आधारित प्रयास, सरकारी योजनाओं से कहीं अधिक परिणाम दे सकते हैं यदि उन्हें सही ढंग से लागू किया जाए।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- मदुरै को स्वच्छ सर्वेक्षण 2025 में भारत का सबसे गंदा शहर घोषित किया गया।
- बेंगलुरु पाँचवे और दिल्ली दसवें स्थान पर सबसे गंदे शहरों में रहे।
- इंदौर, सूरत और नवी मुंबई को “सुपर स्वच्छ लीग” में शामिल किया गया।
- रायपुर और जबलपुर जैसे छोटे शहरों ने बड़े महानगरों से बेहतर प्रदर्शन किया।
भविष्य की चुनौतियाँ और रास्ता
स्वच्छता बनाए रखने के लिए नागरिक अनुशासन, जन-जागरूकता और कुशल कचरा प्रबंधन तंत्र की अनिवार्यता फिर से सिद्ध हो चुकी है। जैसे-जैसे शहरी जनसंख्या बढ़ रही है, यह आवश्यक हो गया है कि शहरों की योजना बनाते समय स्वच्छता को प्राथमिकता दी जाए और नागरिकों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए। तभी भारत की “स्वच्छ और रहने योग्य शहरों” की परिकल्पना वास्तविकता में बदल पाएगी।