सूचना का अधिकार बनाम डेटा संरक्षण: पारदर्शिता पर मंडराता खतरा

भारत में लोकतंत्र का आधार नागरिकों की भागीदारी और पारदर्शिता है। इसी सिद्धांत को मजबूती देने के लिए 2005 में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम अस्तित्व में आया। यह अधिनियम मानता है कि सरकार द्वारा एकत्रित की गई जानकारी नागरिकों की है और सरकार केवल इसका संरक्षक है। परंतु हाल ही में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDP Act) के तहत किए गए संशोधन, विशेष रूप से RTI की धारा 8(1)(j) में बदलाव, इस पारदर्शिता के मूल भावना पर खतरा बन गए हैं।
सूचना और निजता के बीच संतुलन
RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में पहले से ही यह प्रावधान था कि यदि कोई जानकारी सार्वजनिक गतिविधि से संबंधित नहीं है और उसकी सार्वजनिक होने से किसी की निजता का अकारण उल्लंघन होता है, तो उसे न देने का प्रावधान है। लेकिन इसमें एक “प्रावधान” जोड़ा गया था जो कहता है कि जो जानकारी संसद या राज्य विधानसभा को नहीं रोकी जा सकती, वह आम नागरिक से भी नहीं रोकी जा सकती। यह RTI की आत्मा को बनाए रखने वाला सिद्धांत था।
अब DPDP अधिनियम के तहत यह प्रावधान मात्र छह शब्दों में समेट दिया गया है। इससे यह आशंका प्रबल हो गई है कि अब अधिकांश जानकारी “व्यक्तिगत” बताकर रोकी जा सकती है।
“व्यक्तिगत जानकारी” की अस्पष्टता और खतरे
नया संशोधन “व्यक्तिगत जानकारी” को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता। एक पक्ष कहता है कि व्यक्ति का अर्थ सामान्य मानव है, जबकि DPDP अधिनियम इसे व्यापक बनाता है — जिसमें व्यक्ति, कंपनी, संगठन, परिवार और यहाँ तक कि राज्य भी शामिल हैं। यदि यह व्याख्या लागू होती है, तो लगभग सभी जानकारी को किसी “व्यक्तिगत इकाई” से जोड़कर छिपाया जा सकता है।
RTI इस व्याख्या के चलते RDI – “Right to Deny Information” – बन सकता है। इससे सूचना प्राप्ति का मूल अधिकार लगभग निष्क्रिय हो जाएगा।
सरकारी अधिकारी और भय का वातावरण
चूंकि DPDP अधिनियम के तहत गलत जानकारी देने पर ₹250 करोड़ तक का जुर्माना हो सकता है, इसलिए PIO (सार्वजनिक सूचना अधिकारी) किसी भी जोखिम से बचने के लिए जानकारी देने से बचेंगे। यह भय का माहौल पारदर्शिता के लिए अत्यंत हानिकारक है।
भ्रष्टाचार को बढ़ावा
RTI अधिनियम भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण हथियार रहा है। किंतु अब यह क्षमता कम हो रही है:
- जन निगरानी खत्म: नागरिकों के पास सरकारी कार्यों की निगरानी का अधिकार घट रहा है।
- आवश्यक जानकारी का निषेध: यहां तक कि अपने मार्कशीट या पेंशन की जानकारी भी “निजी” बताकर रोकी जा सकती है।
- भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन: “घोस्ट एम्प्लॉई” और गलत लाभार्थियों की जानकारी को अब आसानी से छुपाया जा सकता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- RTI अधिनियम 2005 में पारित हुआ था, जो नागरिकों को सरकार से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है।
- RTI की धारा 8(1)(j) में “प्रावधान” था कि संसद को उपलब्ध जानकारी नागरिकों से नहीं छिपाई जा सकती।
- DPDP अधिनियम के तहत ₹250 करोड़ तक जुर्माने की व्यवस्था है, जिससे सूचना अधिकारी जानकारी देने से डर सकते हैं।
- DPDP अधिनियम की धारा 44(3) और RTI की संशोधित धारा 8(1)(j) को लोकतंत्र पर प्रतिगामी हमला माना जा रहा है।