सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड की बिक्री पर रोक लगाने से इंकार किया

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 26 मार्च, 2021 को 1 अप्रैल से चुनावी बॉन्ड की नई बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। यह निर्णय चार राज्यों – केरल, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु और केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी के विधानसभा चुनावों से पहले लिया गया है।

मुख्य बिंदु

सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाने से इंकार करते हुए कहा कि इन बांडों को 2018 और 2019 में बिना किसी बाधा के जारी करने की अनुमति दी गई थी। इन बांड्स  पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं।

पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट की बेंच एक एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association for Democratic Reforms – ADR) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बांड पर रोक लगाने की मांग कर  रही थी। एनजीओ ने दावा किया कि असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले किसी भी तरह के चुनावी बांड की बिक्री शेल कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों के लिए अवैध फंडिंग में वृद्धि करेगी।

ADR द्वारा दिए गए तर्क

ADR की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने चुनावी बांड के खिलाफ दलील दी। उन्होंने तर्क दिया कि, चुनावी बांड सत्तारूढ़ पार्टी के लिए दान के नाम पर रिश्वत प्राप्त करने के लिए एक उपकरण में बदल गया था।

चुनावी बॉन्ड

2017-18 में इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने का प्रस्ताव घोषित किया गया। यह वचन पत्र (promissory note) के समान एक वित्तीय साधन है जिसका उपयोग राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जाता है और केंद्र सरकार से प्राधिकरण के बाद अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा जारी किया जाता है। यह केवल चेक और डिजिटल भुगतानों के खिलाफ जारी किया जाता है, जो कि निर्धारित समय सीमा के भीतर एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के नामित खाते में रिडीमेंबल है।

Originally written on March 26, 2021 and last modified on March 26, 2021.

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