सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: तीसरे बच्चे के लिए भी मिलेगा मातृत्व अवकाश

23 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में तमिलनाडु की एक शिक्षिका को तीसरे बच्चे के लिए ‘मातृत्व लाभ’ देने की अनुमति दी। यह फैसला न केवल मातृत्व अधिकारों की पुनः पुष्टि करता है, बल्कि महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को भी संवैधानिक संरक्षण प्रदान करता है।

मामला क्या था?

धर्मपुरी ज़िले की एक सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय में अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में कार्यरत महिला ने 2021 में अपने तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश की मांग की थी। पहले विवाह से उनके दो बच्चे थे, जिनकी अभिरक्षा उनके पूर्व पति के पास है। 2018 में पुनः विवाह के बाद, तीसरे बच्चे के गर्भधारण पर उन्होंने अगस्त 2021 से मई 2022 तक अवकाश के लिए आवेदन किया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। मद्रास उच्च न्यायालय की द्वैतीय पीठ ने भी यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह उनका तीसरा बच्चा है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए कहा कि:

  • मातृत्व लाभ केवल दो बच्चों तक सीमित नहीं है।
  • मातृत्व अवकाश को मातृत्व अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना जाना चाहिए।
  • जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21) केवल जीवित रहने का नहीं, बल्कि गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है, जिसमें स्वास्थ्य, निजता और समानता भी शामिल हैं।
  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 में यह स्पष्ट है कि तीसरे बच्चे पर अवकाश की अवधि भले ही कम हो (12 सप्ताह), परंतु अधिकार पूरी तरह से समाप्त नहीं किया गया है।

जनसंख्या नियंत्रण और अधिकारों में संतुलन

न्यायालय ने यह भी कहा कि जनसंख्या नियंत्रण और प्रजनन अधिकार एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। दोनों उद्देश्यों को मानवता और न्यायपूर्ण तरीके से संतुलित करना आवश्यक है। मातृत्व लाभ देना एक सामाजिक, संवैधानिक और नैतिक दायित्व है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत सरकारी सेविकाओं को मातृत्व अवकाश का अधिकार है।
  • 2017 के संशोधन के अनुसार दो बच्चों तक 26 सप्ताह और उससे अधिक के लिए 12 सप्ताह की छुट्टी मिलती है।
  • अनुच्छेद 21 में जीवन, गरिमा, स्वास्थ्य और निजता के अधिकार को शामिल किया गया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का भी हवाला दिया, जो प्रजनन अधिकारों को मान्यता देते हैं।

यह फैसला न केवल एक महिला को न्याय दिलाने का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत का संविधान और न्यायपालिका महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए सजग और संवेदनशील हैं। यह निर्णय भविष्य में अन्य मामलों के लिए मिसाल बनेगा और महिलाओं के लिए एक सशक्त सन्देश देगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *