सिख विवाह अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: “आनंद विवाह अधिनियम” को प्रभावी बनाने की पहल

इस महीने की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्देश में 17 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों को चार माह के भीतर “आनंद विवाह अधिनियम, 1909” के तहत सिख विवाहों के पंजीकरण हेतु नियम बनाने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक संबंधित राज्य नियम नहीं बनाते, तब तक उन्हें मौजूदा विवाह पंजीकरण कानूनों के अंतर्गत आनंद कारज विवाहों को मान्यता और पंजीकरण देना होगा।
यह निर्णय देश भर के सिख दंपतियों को उनकी धार्मिक परंपरा के अनुरूप विवाह पंजीकरण का कानूनी अधिकार देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो अब तक पूरे भारत में समान रूप से उपलब्ध नहीं था।

आनंद विवाह अधिनियम: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सीमाएं

“आनंद कारज” — अर्थात् “आनंदमयी एकता” — सिख धर्म में विवाह की विधिपूर्वक मान्यता प्राप्त धार्मिक रस्म है। इसमें दंपति गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष चार बार फेरे लेते हैं, जिनमें “लावां” नामक पवित्र शबदों का पाठ होता है। यह रस्म सिखों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व रखती है।
1909 में ब्रिटिश काल में बनाए गए “आनंद विवाह अधिनियम” ने इस रस्म को विधिक मान्यता दी, परंतु इसमें विवाह पंजीकरण की कोई व्यवस्था नहीं थी। यह कमी 2012 में “आनंद विवाह (संशोधन) अधिनियम” के माध्यम से दूर की गई, जिसमें धारा 6 जोड़ी गई और राज्यों को पंजीकरण हेतु नियम बनाने का निर्देश दिया गया।

राज्य सरकारों की निष्क्रियता और सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप

हालांकि संशोधन को 10 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, फिर भी अधिकांश राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अब तक नियम नहीं बना सके हैं। 2022 में अधिवक्ता अमनजोत सिंह चड्ढा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस निष्क्रियता की ओर ध्यान दिलाया। याचिका में कहा गया कि विवाह प्रमाणपत्र के अभाव में सिख दंपतियों को निवास, विरासत, भरण-पोषण जैसे मामलों में कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि नियमों की अनुपस्थिति में भी कोई पंजीकरण आवेदन खारिज नहीं किया जा सकता और राज्यों पर पंजीकरण तंत्र बनाने की सकारात्मक जिम्मेदारी है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • आनंद विवाह अधिनियम, 1909 भारत में किसी धार्मिक विवाह रस्म को कानूनी मान्यता देने वाला पहला विशेष अधिनियम था।
  • 2012 में इसके संशोधन के तहत पहली बार विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को अधिनियम में शामिल किया गया।
  • वर्तमान में अधिकांश सिख दंपति हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत ही विवाह पंजीकृत कराते हैं।
  • सिखों के लिए अलग विवाह, तलाक, और संपत्ति से जुड़े कानूनी अधिकारों की अब तक स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।

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